
Pradosh Vrat ka udyapan: प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) हिंदू धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक है, जिसका महत्व भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Goddess Parvati) की कृपा प्राप्त करने में निहित है। यह व्रत प्रत्येक महीने में दो बार आता है और इसका पालन करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का उद्यापन कैसे किया जाता है? उद्यापन की सही विधि और नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। इस लेख में हम आपको प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि, नियम और सामग्री के बारे में विस्तार से बताएंगे। आप जानेंगे कि उद्यापन के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं, कैसे भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए, और उद्यापन के बाद क्या करना चाहिए। साथ ही, हम आपको बताएंगे कि विभिन्न वारों में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का क्या महत्व है और उनसे क्या लाभ मिलते हैं।
तो चलिए, इस रोचक और ज्ञानवर्धक लेख में डुबकी लगाते हैं और जानते हैं प्रदोष व्रत के उद्यापन की पूरी विधि और नियम। यह जानकारी न केवल आपके लिए उपयोगी होगी, बल्कि आप इसे अपने परिवार और मित्रों के साथ भी साझा कर सकते हैं। तो देर किस बात की, आइए शुरू करते हैं!
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Table Of Content:-Pradosh Vrat ka Udyapan
S.NO | प्रश्न |
1 | क्या होता है प्रदोष व्रत का उद्यापन? |
2 | प्रदोष व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए? |
3 | प्रदोष व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है? |
4 | प्रदोष व्रत उद्यापन विधि |
5 | प्रदोष व्रत उद्यापन सामग्री |
6 | प्रदोष व्रत उद्यापन नियम |
7 | प्रदोष व्रत कितने रखने चाहिए? |
8 | प्रदोष व्रत का उद्यापन किस महीने में करना चाहिए? |
क्या होता है प्रदोष व्रत का उद्यापन? (What is Pradosh Vrat Udyapan)
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का उद्यापन व्रत पूर्ण होने के बाद किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) करने से भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Goddess Parvati) प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, कम से कम 11 या 26 प्रदोष व्रत करने के बाद उद्यापन करना चाहिए।
उद्यापन विधि में व्रती स्नान करके साफ कपड़े पहनता है और भगवान शिव, गणेश और पार्वती के लिए पवित्र स्थान तैयार करता है। पूजा, आरती और हवन के बाद ब्राह्मणों और भगवान शिव (Lord Shiva) को भोजन का भोग लगाया जाता है। अंत में व्रती और उसका परिवार आशीर्वाद लेकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। उद्यापन से व्रत का समापन होता है और भक्त को सफलता, खुशी, शांति और समृद्धि मिलने की आशा होती है।
प्रदोष व्रत 2025 लिस्ट | List of Pradosh Vrat in 2025
प्रदोष व्रत जनवरी 2025 (Pradosh Vrat January 2025)
11 जनवरी 2025 | शनिवार | शनि प्रदोष व्रत |
27 जनवरी 2025 | सोमवार | सोम प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत फरवरी 2025 (Pradosh Vrat Feb 2025)
9 फरवरी 2025 | रविवार | रवि प्रदोष व्रत |
25 फरवरी 2025 | मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत मार्च 2025 (Pradosh Vrat March 2025)
11 मार्च 2025 | मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत |
27 मार्च 2025 | बृहस्पतिवार | गुरु प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत अप्रैल 2025 (Pradosh Vrat April 2025)
10 अप्रैल 2025 | बृहस्पतिवार | गुरु प्रदोष व्रत |
25 अप्रैल 2025 | शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत मई 2025 (Pradosh Vrat May 2025)
09 मई 2025 | शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत |
24 मई 2025 | शनिवार | शनि प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत जून 2025 (Pradosh Vrat June 2025)
08 जून 2025 | रविवार | रवि प्रदोष व्रत |
23 जून 2025 | सोमवार | सोम प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत जुलाई 2025 (Pradosh Vrat July 2025)
08 जुलाई 2025 | मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत |
22 जुलाई 2025 | मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत अगस्त 2025 (Pradosh Vrat August 2025)
06 अगस्त 2025 | बुधवार | बुध प्रदोष व्रत |
20 अगस्त 2025 | बुधवार | बुध प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत सितम्बर 2025 (Pradosh Vrat September 2025)
05 सितम्बर 2025 | शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत |
19 सितम्बर 2025 | शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत अक्टूबर 2025 (Pradosh Vrat October 2025)
04 अक्टूबर 2025 | शनिवार | शनि प्रदोष व्रत |
18 अक्टूबर 2025 | शनिवार | शनि प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत नवम्बर 2025 (Pradosh Vrat November 2025)
03 नवम्बर 2025 | सोमवार | सोम प्रदोष व्रत |
17 नवम्बर 2025 | सोमवार | सोम प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत दिसम्बर 2025 (Pradosh Vrat December 2025)
02 दिसम्बर 2025 | मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत |
07 दिसम्बर 2025 | बुधवार | बुध प्रदोष व्रत |
प्रदोष व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए? (When To Do Pradosh Vrat Udyapan)
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का उद्यापन प्रदोष व्रत पूरा होने के बाद किया जाता है। आमतौर पर भक्त 11 या 26 प्रदोष व्रत करते हैं। उद्यापन के दिन भक्त स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा करते हैं। उद्यापन के समय गणेश जी की पूजा, हवन और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। उद्यापन की तिथि वही होती है जिस दिन प्रदोष व्रत पूरा हो रहा हो। प्रदोष व्रत के उद्यापन से भक्तों को भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
प्रदोष व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है? (Pradosh Vrat kaise kiya Jata Hai)
प्रदोष व्रत का उद्यापन निम्नलिखित विधि से किया जाता है:
- व्रत समाप्ति: प्रदोष व्रत पूरा होने के बाद, व्रती को अगले दिन सुबह स्नान करके साफ सफेद वस्त्र पहनना चाहिए। फिर पूजा स्थल को गंगाजल या साफ पानी से साफ करके रंगोली बनानी चाहिए।
- भगवान शिव की पूजा: भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति को एक तकिए या साफ कपड़े पर स्थापित करें। फिर फूल, प्रसाद आदि अर्पित करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
- हवन: उद्यापन के दौरान हवन करना चाहिए। हवन कुंड में समिधा, घी और सामग्री डालकर अग्नि प्रज्वलित करें। फिर शिव मंत्रों का उच्चारण करते हुए आहुतियाँ दें।
- गणेश पूजा: हवन के बाद भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। गणेश जी को लड्डू का भोग लगाएं और उनकी आरतए। उन्हें दक्षिणा और उपहार भी दें।
- दान-पुण्य: व्रत के उद्यापन पर जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। यह पुण्य कार्य माना ज
- प्रसाद वितरण: अंत में प्रसाद का वितरण करके सभी को आशीर्वाद दें। प्रदोष व्रत का उद्यापन इस प्रकार पूरा होता है।
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प्रदोष व्रत उद्यापन विधि क्या है? (Pradosh Vrat Udyapan vidhi)
- उद्यापन की तैयारी: प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इससे एक दिन पहले द्वादशी को भगवान गणेश की पूजा करके रात भर शिव-पार्वती और गणेश जी के भजन गाकर जागरण करना चाहिए।
- स्नान और पवित्रता: उद्यापन के दिन प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्वच्छ 7 धारण करें। पूजा स्थल को भी शुद्ध कर लें।
- पूजा मंडप की स्थापना: पूजा स्थल पर रंगीन वस्त्रों और रंगोली से सजाकर मंडप बनाएं। मंडप में एक चौकी या पटरे पर शिव-पार्वती और गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
- शिव-पार्वती की पूजा: अब विधिवत षोडशोपचार विधि से शिव-पार्वती की पूजा करें। धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करके आरती करें।
- हवन और मंत्र: हवन कुंड में आम की लकड़ी और खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करते हुए आहुतियाँ दें।
- दान और भोजन: ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दें और भोजन कराएं। यदि संभव न हो तो किसी मंदिर में दान करें।
- प्रसाद वितरण: हवन और पूजा के बाद बंधु-बांधवों के साथ प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें।
- कथा श्रवण: उस दिन जो भी वार हो, उस वार के अनुसार प्रदोष व्रत कथा का श्रवण या पठन अवश्य करना चाहिए।
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) के इस उद्यापन से “भक्तों को शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है” और “कष्टों को दूर कर दुखों और परेशानियों से मुक्ति” मिलती है। सही विधि से करने पर यह व्रत जीवन में “सुख-शांति और लंबी आयु का वरदान” देता है
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प्रदोष व्रत उद्यापन सामग्री (Pradosh Vrat Udyapan Samagiri List)
प्रदोष व्रत उद्यापन की सामग्री की सूची निम्नलिखित है:
S.NO | उद्यापन सामग्री |
1 | नए और स्वच्छ वस्त्र |
2 | चौकी या छोटी पूजा वेदी |
3 | भगवान गणेश, शिव, और देवी पार्वती जी की मूर्तियाँ |
4 | अगरबत्ती, दीपक, फूल, और अन्य प्रसाद |
5 | गंगा जल या स्वच्छ पानी |
6 | देवी देवताओं के लिए नए कपड़े |
7 | शिवलिंग स्थापना के लिए रेत या मिट्टी |
8 | बिल्व पत्र, फूल, और अगरबत्ती |
9 | नैवेद्य (भोजन प्रसाद) |
10 | गाय के गोबर के केक, घी, और अनाज के साथ हवन |
11 | खीर का प्रसाद |
12 | दान के लिए भोजन, कपड़े, या धन |
13 | ब्राह्मण को प्रसाद के रूप में भोजन |
प्रदोष व्रत उद्यापन नियम (Pradosh Vrat Udyapan Niyam)
प्रदोष व्रत के उद्यापन के नियम इस प्रकार हैं:
अगर स्कंद पुराण की माने तो स्कंद पुराण (Skanda Purana) के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने वाले व्यक्ति को कम से कम 11 या 26 प्रदोष व्रत करने के बाद ही उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पहले द्वादशी तिथि को श्री गणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें और रात भर शिव-पार्वती व गणेश जी के भजनों के साथ जागरण करें।
उद्यापन के दिन स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को शुद्ध करें। मंडप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजा करें, भोग लगाएं और उस दिन की त्रयोदशी कथा सुनें। फिर 1.25 किलो आम की लकड़ी से हवन कर ‘ॐ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र से 108 आहुतियाँ दें। हवन के बाद आरती करके ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन व दान दें। अंत में परिवार सहित प्रसाद व भोजन ग्रहण करें। प्रदोष व्रत का उद्यापन करने से साधक के पाप कर्म नष्ट होते हैं और भगवान शिव प्रसन्न होकर उसकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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प्रदोष व्रत कितने रखने चाहिए?
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat), जो शिव और पार्वती के समर्पित होता है, प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है। इसका पालन स्वास्थ्य, दीर्घायु और इच्छाओं की पूर्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से, अगर कोई व्यक्ति 11 या 12 लगातार महीनों तक प्रदोष व्रत का पालन करता है, तो उनकी सभी इच्छाएँ त्वरित रूप से पूरी होती हैं।
प्रदोष व्रत का उद्यापन किस महीने में करना चाहिए?
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है, जो कि शुक्ल और कृष्ण पक्ष के दौरान होता है। इसलिए, यह व्रत प्रत्येक महीने में दो बार आता है, व्रत का उद्यापन तब किया जाता है जब व्रत के दिन पूरे हो जाते हैं।
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Conclusion:-Pradosh Vrat ka Udyapan
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat ka udyapan) का उद्यापन भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। यह व्रत मन की शांति, समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी लाभदायक माना जाता है। प्रदोष व्रत से संबंधित यह विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो कृपया इसे अपने सभी प्रियजनों के साथ भी साझा करें, ऐसी और भी प्रमुख व्रत और उनकी कथाओं को पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर रोजाना विजिट करें।
FAQ’s:-Pradosh Vrat ka Udyapan
Q. प्रदोष व्रत क्या है?
Ans. प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) एक उच्चतम और शुभ व्रत है, जिसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक चंद्र मास की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी (13वें दिन) पर माता पार्वती और भगवान शिव के समर्पित किया जाता है।
Q. प्रदोष व्रत का महत्व क्या है?
Ans. प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का पालन करने से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और कुंडली दोष और सर्प दोष के निवारण के साथ-साथ अनेक लाभ मिलते हैं।
Q. प्रदोष व्रत कब मनाया जाता है?
Ans. प्रदोष व्रत हर लुनर मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी (13वें दिन) पर मनाया जाता है।
Q. प्रदोष व्रत में कौन-कौन सी पूजा सामग्री का उपयोग होता है?
Ans. प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) में ताजगी और सुगंधित सफेद फूल और माला, बिल्व पत्तियां, धतूरा, बेल पत्तियां, गंगाजल और पानी, भांग, कपूर, अगरबत्ती, शुद्ध गाय की घी के दीप और काले तिल का उपयोग होता है।
Q. प्रदोष व्रत के दौरान कौन-कौन से मंत्र जपे जाते हैं?
Ans. प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) के दौरान ‘ॐ नमः शिवाय’, ‘ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ॐ’, ‘ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ’, और ‘ॐ ह्रीं जुं सः भुः भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात, ॐ स्वः भुवः भुः ॐ सः जुं हौं ॐ’ के मंत्र का जप किया जाता है।
Q. प्रदोष व्रत की विधि क्या है?
Ans. प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) की विधि सूर्योदय से पहले उठने, स्नान करने, सफेद कपड़े पहनने, पूजा घर की सफाई करने, और शिव पूजा की विधि का पालन करने में शामिल है।
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