
सारनाथ मंदिर- इतिहास महत्व और विशेषताएं (Sarnath Temple History, Importance And Features): सारनाथ मंदिर, जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में स्थित है। यह पवित्र स्थान भगवान बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्ति के बाद दिया गया पहला उपदेश, जिसे “धर्मचक्र प्रवर्तन” के नाम से जाना जाता है, का स्थल है। सारनाथ की भूमि पर कदम रखते ही एक अद्भुत शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव होता है, जो दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो बौद्ध धर्म की गहरी शिक्षाओं से जुड़ना चाहते हैं।
सारनाथ न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पुरातात्त्विक दृष्टि से भी एक आकर्षक स्थल है, जहां खुदाई में ऐसे अवशेष मिले हैं जो बुद्ध के समय के हैं। मंदिर का शांत वातावरण और आध्यात्मिक आभा इसे ध्यान और चिंतन के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है। सारनाथ मंदिर क्या है?, सारनाथ मंदिर का इतिहास क्या है? सारनाथ मंदिर का महत्व व इसकी विशेषताएं क्या हैं?, ऐसे कई सवाल हम सभी के मन में आते हैं! इसलिए इस लेख में, हम सारनाथ मंदिर के इतिहास, इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व, यहां पहुंचने के तरीकों और सारनाथ के आसपास के लोकप्रिय स्थलों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
तो चलिए इस विशेष लेख के जरिए जानते हैं वाराणसी के प्रसिद्ध सारनाथ मंदिर के बारे में विस्तार से…..
सारनाथ मंदिर:-परिचय

सारनाथ (Sarnath), उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित एक प्राचीन और धार्मिक महत्व वाला स्थल है। यह बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है और विश्वभर में “धम्मचक्र प्रवर्तन” (धर्म के पहिए को गति देने) की घटना के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर महात्मा बुद्ध ने अपने पहले उपदेश में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया था। इसके अलावा, सारनाथ जैन धर्म के लिए भी महत्व रखता है, क्योंकि यह 11वें जैन तीर्थंकर श्रेयांसनाथ (Shreyansnath) का जन्मस्थान माना जाता है। पुरातात्विक खंडहर, स्तूप, मंदिर, और संग्रहालय यहाँ के ऐतिहासिक वैभव को जीवंत करते हैं। यह स्थान शांति, ज्ञान, और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।
सारनाथ का इतिहास
सारनाथ (Sarnath) का प्राचीन नाम “ईसिपतन” (ऋषिपतन) था, जिसका अर्थ है “ऋषियों का स्थान”। ऐसा माना जाता है कि यहाँ प्राचीन काल में ऋषि-मुनि ध्यान करते थे। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, 528 ईसा पूर्व में बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश यहीं पंचवर्गीय भिक्षुओं को दिया, जिससे बौद्ध संघ की स्थापना हुई।
सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सारनाथ को एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया। उन्होंने यहाँ धमेक स्तूप और अशोक स्तंभ की स्थापना करवाई, जिसमें उत्कीर्ण चार सिंहों की मूर्ति को भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया। इसके बाद गुप्त काल में सारनाथ को और समृद्ध किया गया। इस दौरान कई भव्य मंदिर और विहार बनाए गए। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग (Hiuen Tsang) ने अपने यात्रा विवरण में सारनाथ में 30 बौद्ध मठों और 3000 भिक्षुओं की उपस्थिति का उल्लेख किया।
हालांकि, 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा सारनाथ को नष्ट कर दिया गया, जिससे यह स्थल कई वर्षों तक उपेक्षित रहा। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने इसकी खुदाई की और प्राचीन अवशेषों को फिर से खोजा। वर्तमान में सारनाथ न केवल एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
Location
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धार्मिक महत्व
- बौद्ध धर्म के लिए: सारनाथ बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है, क्योंकि यहीं भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) ने अपने पहले उपदेश में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया था। इस उपदेश को “धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र” कहा जाता है, जिससे बौद्ध संघ की स्थापना हुई। इस स्थल को बौद्ध अनुयायियों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जितना कि बोधगया, कुशीनगर और लुंबिनी। यहाँ स्थित स्तूप और मंदिर बुद्ध के उपदेशों को जीवंत बनाए रखते हैं।
- जैन धर्म के लिए: सारनाथ जैन धर्म के लिए भी अत्यंत पवित्र स्थल है, क्योंकि यह 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ (Shreyansnath) का जन्मस्थान माना जाता है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह स्थल आध्यात्मिकता और शांति का केंद्र है। यहाँ जैन मंदिर स्थित हैं, जिनमें श्रेयांसनाथ की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। इस स्थल का उल्लेख कई जैन ग्रंथों में भी किया गया है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
- हिंदू धर्म के लिए: हालांकि सारनाथ मुख्य रूप से बौद्ध धर्म का तीर्थस्थल है, लेकिन यह हिंदू धर्म से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ का मूलगंध कुटी विहार हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का मिश्रण प्रस्तुत करता है। इसके अलावा, कुछ प्राचीन मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी देखी जा सकती हैं। इस प्रकार, सारनाथ विभिन्न धर्मों की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
धार्मिक स्थलों की विशेषताएँ
- धमेक स्तूप: यह स्तूप लगभग 43 मीटर ऊँचा और 28 मीटर व्यास वाला है। इसे सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था और बाद में गुप्त काल में पुनर्निर्माण किया गया। यह वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
- अशोक स्तंभ: सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह स्तंभ सारनाथ का एक प्रमुख आकर्षण है। इसके शीर्ष पर चार सिंहों की मूर्ति स्थित है, जिसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक माना जाता है। इस स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में बौद्ध धर्म के सिद्धांत उत्कीर्ण हैं।
- मूलगंध कुटी विहार: यह भव्य विहार 1931 में श्रीलंका के बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया था। इसकी वास्तुकला श्रीलंकाई शैली की है, और इसमें भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) की एक विशाल स्वर्ण प्रतिमा स्थापित है।
- सारनाथ संग्रहालय: भारत के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक यह संग्रहालय है, जहाँ अशोक स्तंभ का मूल सिंह शीर्ष, बुद्ध की प्राचीन प्रतिमाएँ, और अन्य ऐतिहासिक अवशेष प्रदर्शित किए गए हैं।
- चौखंडी स्तूप: यह स्तूप वह स्थान है, जहाँ पहली बार पंचवर्गीय भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) से भेंट की थी। मुगल काल में इसे एक वर्गाकार आधार प्रदान किया गया था, जिससे इसका नाम “चौखंडी स्तूप” पड़ा।
सारनाथ कैसे पहुँचे?
- वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (Lal Bahadur Shastri International Airport) है, जो सारनाथ से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से टैक्सी या कैब के माध्यम से सारनाथ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग: सारनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी जंक्शन (Varanasi Junction) है, जिसकी दूरी महज 10 किलोमीटर है। यहाँ से ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या बस द्वारा सारनाथ तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। वाराणसी जंक्शन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और देशभर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग: सारनाथ सड़क मार्ग से उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। वाराणसी से सारनाथ तक जाने के लिए सरकारी और निजी बसें, टैक्सी और ऑटो-रिक्शा उपलब्ध हैं। लखनऊ, प्रयागराज, गोरखपुर, और पटना से भी सारनाथ तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
संक्षिप्त समापन
सारनाथ (Sarnath) एक ऐसा तीर्थ है जहाँ इतिहास, धर्म, और संस्कृति एकाकार हो जाते हैं। यह न केवल बौद्ध अनुयायियों बल्कि इतिहासप्रेमियों और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा देकर इसके महत्व को और बढ़ा दिया है। सारनाथ की शांत वातावरण में आज भी बुद्ध के संदेश की गूँज सुनाई देती है।
Conlusion:-Sarnath Temple
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FAQ’s:-Sarnath Temple
Q. सारनाथ कहाँ स्थित है?
Ans. सारनाथ (Sarnath) उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है और यह बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है।
Q. सारनाथ का प्राचीन नाम क्या था?
Ans. सारनाथ का प्राचीन नाम “ईसिपतन” (ऋषिपतन) था, जिसका अर्थ है “ऋषियों का स्थान”।
Q. सारनाथ बौद्ध धर्म के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans. सारनाथ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहा जाता है।
Q. धमेक स्तूप का निर्माण किसने करवाया था?
Ans. धमेक स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था और बाद में इसे गुप्त काल में पुनर्निर्मित किया गया।
Q. अशोक स्तंभ का क्या महत्व है?
Ans. अशोक स्तंभ पर चार सिंहों की मूर्ति स्थित है, जिसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया है।
Q. सारनाथ जैन धर्म के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans. सारनाथ जैन धर्म के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्मस्थान माना जाता है।