विजया एकादशी व्रत कब है 2025 Vijaya Ekadashi Vrat kab hai 2025): विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) एक पवित्र और शक्तिशाली पर्व है, जो हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह पर्व भगवान विष्णु की आराधना और पूजा के लिए मनाया जाता है, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का प्रतीक हैं। विजया एकादशी एक ऐसा पर्व है जो हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं। विजया एकादशी एक ऐसा पर्व है जो हमें अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विजया एकादशी क्या है?, विजया एकादशी 2024 में कब मनाई जाएगी? और विजया एकादशी का महत्व क्या है?, विजया एकादशी की पूजा विधि क्या है?, विजया एकादशी की व्रत कथा क्या है? और इस पर्व को कैसे मनाया जाता है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए, आइए हम विजया एकादशी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
तो चलिए इस विशेष लेख के जरिए जानते हैं विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) से संबंधित सभी जानकारी के बारे में विस्तार से…..
विजया एकादशी व्रत क्या है? | Vijaya Ekadashi vrat kya hai?
विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और इसे विजय प्राप्ति का व्रत माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता और विजय मिलती है। इसे रखने से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को मानसिक शांति प्राप्त होती है। इस दिन उपवास रखने और विशेष पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। विजया एकादशी का व्रत करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की भी मान्यता है। इस दिन श्रद्धालु विशेष रूप से भक्ति भाव से भगवान की आराधना करते हैं। विजया एकादशी व्रत का महत्व अत्यधिक है। इसे शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति को वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
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विजया एकादशी 2025 कब है? | Vijaya Ekadashi 2025 kab hai?
विजया एकादशी 2025 (Vijaya Ekadashi 2025) का व्रत 24 फरवरी, सोमवार को मनाया जाएगा। यह एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की होती है, जिसकी शुरुआत 23 फरवरी 2025 को दोपहर 1 बजकर 55 मिनट पर होगी। इस दिन भक्तजन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत का पालन करते हैं। विजया एकादशी का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि इसे विजय प्राप्ति और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्तजन इस दिन विशेष अनुष्ठान और पूजा विधि का पालन करते हैं।
विजया एकादशी का महत्व क्या है? | Vijaya Ekadashi ka mahatva kya hai?
विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- पापों से मुक्ति: विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। यह दिन विशेष रूप से आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
- सफलता और विजय: इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष लाभकारी है जो किसी प्रतियोगिता या परीक्षा में सफलता की कामना करते हैं।
- भगवान विष्णु की कृपा: विजया एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह दिन भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मकता लाता है।
- धार्मिक अनुष्ठान: इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। स्वर्ण, भूमि, अन्न और गौ दान जैसे कार्यों से अधिक पुण्य मिलता है, जो जीवन में सुख और समृद्धि लाते हैं।
- शत्रुओं पर विजय: विजया एकादशी का नाम ही विजय से जुड़ा है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति मिलती है, जिससे जीवन में आने वाली बाधाओं का सामना करना आसान होता है।
विजया एकादशी व्रत पूजा विधि क्या है? | Vijaya Ekadashi vrat puja vidhi kya hai?
- संकल्प और व्रत प्रारंभ: विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात से होती है। व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और मन, वाणी तथा कर्म से पवित्रता बनाए रखनी चाहिए। प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
- स्नान और शुद्धि प्रक्रिया: प्रातः जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर या मंदिर के पूजा स्थल को शुद्ध जल और गंगाजल से शुद्ध करें। तुलसी पत्र लेकर भगवान विष्णु का स्मरण करें और पूजा की तैयारी करें।
- भगवान विष्णु की पूजा: पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पीले फूल, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। श्रीहरि को तुलसी पत्र अर्पण करें और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
- व्रत कथा का पाठ और श्रवण: विजया एकादशी व्रत के महत्व को समझने के लिए व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें। कथा में भगवान राम के समय इस व्रत की महिमा बताई गई है, जिससे विजय प्राप्त होती है और सभी कष्टों का नाश होता है।
- कीर्तन और भजन-आरती: भगवान विष्णु की भक्ति में कीर्तन और भजन करें। शाम के समय दीप जलाकर विष्णु जी की आरती करें और ‘विष्णु सहस्रनाम’ या ‘भगवद गीता’ का पाठ करें। यह व्रत विशेष रूप से शत्रु बाधा और संकट निवारण के लिए प्रभावी माना जाता है।
- रात्रि जागरण और ध्यान: विजया एकादशी की रात को जागरण करने का विशेष महत्व है। इस दौरान भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और सत्संग में भाग लें। ध्यान और मंत्र जाप करने से आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है और मन शांत होता है।
- व्रत पारण और दान-पुण्य: द्वादशी तिथि को प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल और दक्षिणा का दान करें। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें, जिससे पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
विजया एकादशी व्रत कथा | Vijaya Ekadashi vrat Katha
विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) कथा: श्रीराम की विजय यात्रा
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी की महिमा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। जब धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा कि इस एकादशी का क्या महत्व है, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें एक अद्भुत कथा सुनाई, जिसे ब्रह्माजी ने नारद मुनि को बताया था।
प्राचीन काल की बात है, जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। वन में रहते हुए, दुष्ट रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। इस घटना से श्रीराम अत्यंत व्याकुल हो उठे और उन्होंने सीता माता की खोज में वन-वन भटकना शुरू किया। इसी दौरान उनकी भेंट जटायु से हुई, जो रावण से युद्ध करते हुए घायल अवस्था में पड़े थे। जटायु ने अपने अंतिम समय में श्रीराम को सीता के हरण की जानकारी दी। श्रीराम ने आगे बढ़कर कबंध नामक राक्षस का वध किया और फिर सुग्रीव से मित्रता की। इसके बाद वानर सेना एकत्रित की गई और हनुमानजी को लंका भेजा गया।
हनुमानजी ने वहां सीता माता से भेंट की और श्रीराम की मुद्रिका देकर उन्हें आश्वस्त किया। लंका में रावण की शक्तियों का अनुमान लगाकर हनुमानजी वापस लौटे और श्रीराम को सारा विवरण सुनाया। अब युद्ध के लिए प्रस्थान करने का समय आ गया था, लेकिन एक बड़ी समस्या खड़ी थी—समुद्र पार करना। श्रीराम ने समुद्र की विशाल लहरों को देखते हुए चिंता व्यक्त की कि इतनी बड़ी जलराशि को किस पुण्य के प्रभाव से पार किया जा सकता है। इस पर लक्ष्मण ने सुझाव दिया कि पास के आश्रम में रहने वाले महर्षि बकदाल्भ्य से उपाय पूछना चाहिए। श्रीराम तुरंत मुनि के आश्रम पहुंचे और उनसे विनम्रतापूर्वक समाधान की प्रार्थना की।
महर्षि बकदाल्भ्य ने कहा—”रघुनंदन! यदि आप फाल्गुन कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का व्रत करें, तो निश्चय ही आपकी विजय होगी। यह व्रत अत्यंत पुण्यकारी है और इसके प्रभाव से आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र पार कर लेंगे तथा रावण पर जीत प्राप्त करेंगे।”
मुनि ने व्रत की विधि विस्तार से बताई। उन्होंने कहा कि दशमी तिथि को एक कलश स्थापित किया जाए, जिसमें जल और पल्लव डालें। इसके ऊपर भगवान नारायण की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें। एकादशी के दिन स्नान कर, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करें और रात्रि जागरण करें। द्वादशी को सूर्योदय के बाद कलश सहित अन्य वस्त्र और दक्षिणा ब्राह्मण को दान कर व्रत पूर्ण करें। श्रीराम ने मुनि के निर्देशानुसार विजया एकादशी व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से समुद्र ने स्वयं मार्ग प्रदान किया, जिससे वानर सेना ने पुल बना लिया और लंका पहुंचकर रावण से युद्ध किया। अंततः इस धर्मयुद्ध में श्रीराम की विजय हुई, रावण का अंत हुआ और माता सीता पुनः उन्हें प्राप्त हुईं।
ब्रह्माजी ने कहा, “हे नारद! जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करता है, वह जीवन में सफलता प्राप्त करता है और मृत्यु के बाद अक्षय लोक में जाता है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है।” इस प्रकार, विजया एकादशी न केवल भगवान श्रीराम की विजय का कारण बनी, बल्कि आज भी इस व्रत को करने वाले भक्तों को हर प्रकार की बाधाओं पर विजय प्राप्त होती है।
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Conclusion
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FAQ’s:-Vijaya Ekadashi 2025
Q. विजया एकादशी व्रत कब मनाया जाता है?
Ans. विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) व्रत फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जो 2025 में 24 फरवरी को है।
Q. विजया एकादशी व्रत का क्या महत्व है?
Ans. विजया एकादशी व्रत का महत्व पापों से मुक्ति, सफलता और विजय प्राप्ति के लिए है, विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए।
Q. इस व्रत में किस भगवान की पूजा की जाती है?
Ans. विजया एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जो विजय और समृद्धि के प्रतीक हैं।
Q. विजया एकादशी व्रत करने से क्या लाभ होता है?
Ans. इस व्रत से पापों का नाश होता है, मानसिक शांति प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
Q. विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि क्या है?
Ans. पूजा में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित कर, तुलसी पत्र अर्पण कर, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप किया जाता है।
Q. विजया एकादशी व्रत की शुरुआत कब होती है?
Ans. विजया एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात से होती है, जिसमें ब्रह्मचर्य का पालन और संकल्प लिया जाता है।