
बैसाखी 2025: शुभ मुहूर्त, महत्व व इतिहास (Baisakhi 2025 Shubh Muhurat, Mahatva Aur Itihas): बैसाखी (Baisakhi) हिंदू और सिख धर्म में अत्यंत पवित्र और उल्लास से भरा पर्व है, जिसे नई फसल के आगमन, खुशहाली और आध्यात्मिक जागृति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए समृद्धि, आनंद और नई शुरुआत का संदेश लाती है। क्या आप जानते हैं कि बैसाखी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है? यह पर्व क्यों मनाया जाता है और इसका सांस्कृतिक प्रभाव क्या है?
यदि आप बैसाखी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में जानना चाहते हैं, तो यह समझना आवश्यक है कि हिंदू पंचांग के अनुसार इसका निर्धारण कैसे किया जाता है। इस दिन विशेष अनुष्ठान, कीर्तन, भंगड़ा-गिद्दा और गुरुद्वारों में की जाने वाली सेवा का क्या महत्व है? क्या इस दिन की गई पूजा-अर्चना और दान से जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है? इस लेख में हम आपको बैसाखी 2025 की सम्पूर्ण जानकारी देंगे—इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त, ऐतिहासिक महत्व और इस दिन किए जाने वाले धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों के बारे में विस्तार से बताएंगे।
यदि आप भी इस पावन अवसर पर नई ऊर्जा और खुशहाली का अनुभव करना चाहते हैं और धर्म एवं परंपरा के इस सुंदर उत्सव में शामिल होना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें….
बैसाखी क्या है? | Baisakhi Kya Hai?

बैसाखी (Baisakhi) भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो मुख्य रूप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। यह फसल उत्सव के रूप में जाना जाता है, जो रबी फसल की कटाई के समय मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने के पहले दिन (13 या 14 अप्रैल) पड़ता है। सिख धर्म में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि 1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह त्योहार नृत्य, गीत, और भांगड़ा के साथ मनाया जाता है।
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बैसाखी 2025 कब है? | Baisakhi 2025 Kab Hai?
बैसाखी 2025 (Baisakhi 2025) में 14 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह त्योहार मुख्य रूप से सिखों और हिंदुओं द्वारा फसल कटाई के समय मनाया जाता है। बैसाखी का महत्व सिख धर्म में विशेष है, क्योंकि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन लोग पूजा-अर्चना करते हैं और खुशियों का जश्न मनाते हैं।
बैसाखी कैसे मनाते हैं? | Baisakhi kaise Manate Hain?

- गुरुद्वारा दर्शन और प्रार्थना: बैसाखी (Baisakhi) के दिन श्रद्धालु प्रातःकाल स्नान कर साफ वस्त्र पहनते हैं और गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। वहाँ गुरुग्रंथ साहिब के समक्ष प्रार्थना कर अपने सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं।
- गुरुग्रंथ साहिब की शुद्धि और प्रतिष्ठा: इस पावन अवसर पर गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद ग्रंथ साहिब को आदरपूर्वक ताज के साथ प्रतिष्ठित कर भक्तगण उनकी वाणी को ध्यानपूर्वक सुनते हैं।
- अमृत संचार और पवित्र जल ग्रहण: बैसाखी के दिन विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है, जिसे पंक्ति में बैठकर श्रद्धालु पाँच बार ग्रहण करते हैं। यह प्रक्रिया सिख परंपरा के अनुसार आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
- अरदास और प्रसाद वितरण: अपराह्न के समय सामूहिक अरदास की जाती है, जिसमें गुरु को समर्पित भोग अर्पित किया जाता है। इसके पश्चात इस पवित्र प्रसाद को सभी श्रद्धालुओं में बाँटा जाता है, जिससे वे आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
- सांस्कृतिक नृत्य और उत्सव: इस पर्व पर पंजाब में भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। ढोल-नगाड़ों की गूंज और पारंपरिक गीतों के साथ लोग नई फसल के आगमन की खुशी में उल्लासपूर्वक नृत्य करते हैं।
- लंगर सेवा और सामूहिक भोज: बैसाखी (Baisakhi) के दिन गुरुद्वारों में विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी को प्रेमपूर्वक भोजन कराया जाता है। यह परंपरा सेवा, समानता और भाईचारे का प्रतीक मानी जाती है।
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बैसाखी का इतिहास क्या है? | Baisakhi Ka Itihas Kya Hai?
17वीं शताब्दी में जब पंजाब मुगलों के अत्याचार, अन्याय और भ्रष्टाचार की चपेट में था, तब जनता भय और असहायता के अंधकार में डूबी हुई थी। उसी समय, सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर ने मुगल सम्राट औरंगज़ेब के धार्मिक उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज़ उठाई। वे न केवल हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़े, बल्कि अपने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनके बलिदान के बाद, उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह ने सिख समुदाय का नेतृत्व संभाला और समाज में साहस और संघर्ष की भावना जगाने का संकल्प लिया।
गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर में एक विशाल सभा का आयोजन किया, जहां उन्होंने लोगों को बुराई के विरुद्ध खड़े होने का आह्वान किया। जब उन्होंने सभा में तलवार उठाकर पूछा कि कौन वीर धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार है, तब पांच साहसी योद्धा आगे आए। इन्हीं पांच वीरों को “पंच प्यारे” की उपाधि दी गई, और यहीं से खालसा पंथ की नींव रखी गई। इस घटना ने सिख इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा, जो साहस, बलिदान और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया।
बैसाखी का महत्त्व क्या है? | Baisakhi ka Mahatva Mahatva kya Hai?
- धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व: बैसाखी (Baisakhi) का सिख धर्म में विशेष स्थान है क्योंकि इसी दिन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह दिन सिख समुदाय के लिए आध्यात्मिक जागरण, साहस और बलिदान की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
- कृषि और फसल उत्सव: बैसाखी किसानों के लिए नए वर्ष और कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन वे अपनी मेहनत का फल पाकर भगवान को धन्यवाद देते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं, जिससे यह त्योहार खुशहाली और उल्लास से भर जाता है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक एकता: बैसाखी विभिन्न समुदायों को एक साथ जोड़ने का कार्य करता है। गुरुद्वारों में लंगर सेवा, कीर्तन, नृत्य और मेलों का आयोजन किया जाता है, जो समाज में प्रेम, समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Conclusion
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FAQ’s
Q. बैसाखी किस धर्म और समुदाय के लिए विशेष महत्व रखती है?
Ans. बैसाखी सिख धर्म और पंजाब के किसानों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी।
Q. बैसाखी त्योहार कब मनाया जाता है?
Ans. बैसाखी हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने के पहले दिन पड़ता है।
Q. बैसाखी का कृषि महत्व क्या है?
Ans. बैसाखी रबी फसल की कटाई के समय आता है, जिसे किसान अपनी मेहनत का उत्सव मानकर मनाते हैं। वे भगवान को धन्यवाद देते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं।
Q. बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में कौन-कौन सी गतिविधियाँ होती हैं?
Ans. इस दिन गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब का पाठ, अरदास, अमृत संचार, और लंगर सेवा का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु प्रार्थना कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
Q. बैसाखी के दिन पंच प्यारे का क्या महत्व है?
Ans. बैसाखी के दिन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने पंच प्यारे चुने थे और खालसा पंथ की स्थापना की थी, जो सिख धर्म का अहम हिस्सा बन गया।
Q. बैसाखी उत्सव में कौन-कौन से पारंपरिक नृत्य किए जाते हैं?
Ans. बैसाखी के अवसर पर भांगड़ा और गिद्दा जैसे पारंपरिक नृत्य किए जाते हैं। लोग ढोल की थाप पर नाचते और खुशियां मनाते हैं।