जया एकादशी व्रत कब है 2025 (Jaya Ekadashi Vrat kab Hai 2025): जया एकादशी एक पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह पर्व भगवान विष्णु की आराधना और पूजा के लिए मनाया जाता है, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का प्रतीक हैं। जया एकादशी एक ऐसा पर्व है जो हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं। जया एकादशी एक ऐसा पर्व है जो हमें अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में शुभता और समृद्धि को बढ़ा सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जया एकादशी क्या है?, जया एकादशी 2025 में कब मनाई जाएगी? और जया एकादशी का महत्व क्या है?, जया एकादशी की पूजा विधि क्या है?, जया एकादशी की व्रत कथा क्या है? और इस पर्व को कैसे मनाया जाता है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए, आइए हम जया एकादशी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
तो चलिए इस विशेष लेख के जरिए जानते हैं जया एकादशी व्रत 2025 के बारे में सब कुछ विस्तार से….
जया एकादशी व्रत क्या है? | Jaya Ekadashi Vrat kya Hai
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi vrat) का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से साधक को जीवन के सभी सुख-संपत्तियों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के पालन से देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है, जिससे परिवार में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। व्रत के दौरान नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक माना जाता है, क्योंकि इनका उल्लंघन करने से पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिल पाता। जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत करने से व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। यह व्रत न केवल भौतिक सुख-संपदा देता है, बल्कि आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
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जया एकादशी 2025 कब है? | Jaya Ekadashi 2025 kab Hai
हिंदू धर्म में जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। वर्ष 2025 में यह पावन व्रत 8 फरवरी, शनिवार को पड़ेगा। पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि की शुरुआत 7 फरवरी, शुक्रवार को रात 9:27 बजे होगी और समापन 8 फरवरी, शनिवार को सुबह 8:15 बजे होगा। व्रतधारी इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास रखेंगे। व्रत का पारण अगले दिन 9 फरवरी, रविवार की प्रातः किया जाएगा। जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन माना जाता है।
जया एकादशी का महत्व क्या है? | Jaya Ekadashi ka Mahatva kya Hai
जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का महत्व निम्नलिखित है:
- सभी पापों से मुक्ति- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है और साधक को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
- सुख-समृद्धि और लक्ष्मी कृपा- इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। इससे जीवन में आर्थिक संपन्नता, परिवार में खुशहाली और मानसिक शांति बनी रहती है। व्रतधारी पर भगवान की विशेष कृपा होती है।
- विघ्नों का नाश और विजय प्राप्ति- जया एकादशी व्रत करने से सभी प्रकार के विघ्न, नकारात्मक शक्तियां और अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत व्यक्ति को जीवन में विजय और सफलता दिलाने में सहायक होता है, जिससे सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
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जया एकादशी व्रत पूजा विधि क्या है? | Jaya Ekadashi Vrat Puja Vidhi kya Hai
- स्नान और व्रत संकल्प: जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। यह संकल्प आपके मन में श्रद्धा और भक्ति को बढ़ाता है, जिससे पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
- पूजा सामग्री की तैयारी: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, और पंचामृत तैयार करें। इन सामग्रियों का उपयोग भगवान विष्णु की पूजा में किया जाता है। यह सामग्री आपके भक्ति भाव को दर्शाती है और पूजा को पूर्णता प्रदान करती है।
- भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने सभी सामग्री रखकर विधिपूर्वक पूजा करें। धूप और दीप जलाएं, चंदन लगाएं और फल अर्पित करें। इस दौरान मंत्रों का जाप करें, जिससे आपकी भक्ति और समर्पण प्रकट हो सके।
- तुलसी की पूजा: जया एकादशी के दिन तुलसी के पौधे की पूजा करना भी महत्वपूर्ण है। तुलसी को जल अर्पित करें और उसके आगे देसी घी का दीपक जलाएं। तुलसी की आरती करें, क्योंकि इसे भगवान विष्णु की प्रिय माना जाता है और यह पूजा को विशेष बनाता है।
- भोजन और दान: एकादशी के दिन उपवास रखें और द्वादशी तिथि को पारण करें। इस दिन जरूरतमंदों या ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना भी महत्वपूर्ण है। यह कार्य आपके पुण्य को बढ़ाता है और समाज में सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करता है।
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जया एकादशी व्रत कथा | Jaya Ekadashi Vrat Katha
स्वर्गलोक में एक बार इंद्र की सभा में भव्य उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, ऋषि-मुनि और गंधर्व इस दिव्य आयोजन में सम्मिलित थे। पूरे सभागार में संगीत और नृत्य की मधुर लहरियां गूंज रही थीं। गंधर्व कन्याएं और गंधर्व बड़े उल्लास के साथ नृत्य और गायन कर रहे थे। उन्हीं में से एक थी रूपवती पुष्यवती, जिसकी मोहक नृत्य मुद्राएं सबका मन मोह रही थीं। वहीं, गंधर्व माल्यवान अपनी सुरीली वाणी से सभा को मंत्रमुग्ध कर रहा था।
इसी बीच एक अनहोनी घट गई। पुष्यवती की दृष्टि जैसे ही माल्यवान पर पड़ी, वह उसके सौंदर्य और आकर्षण में खो गई। भावनाओं के प्रवाह में बहकर वह अपनी नृत्य-लय से भटक गई। उधर, माल्यवान भी उसकी सौंदर्य-छटा में ऐसा खोया कि उसका गायन बेसुरे स्वरों में बदल गया। यह दृश्य देख इंद्र सहित समस्त सभा विस्मित रह गई। इंद्रदेव के क्रोध की ज्वाला भड़क उठी, और उन्होंने दोनों को तुरंत सभा से निष्कासित कर दिया। उनके कठोर वचन गूंजे – “तुम दोनों अपने कर्तव्य से विमुख हो गए, अब तुम्हें पिशाच योनि का कठोर दंड भुगतना होगा!”
श्राप के प्रभाव से माल्यवान और पुष्यवती स्वर्ग से गिरकर प्रेत योनि में चले गए। वहाँ उनका जीवन अत्यंत कष्टदायक था—भूख, प्यास और पीड़ा उनके स्थायी साथी बन गए। इस यातनापूर्ण अवस्था में एक दिन ऐसा आया जब माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। संयोग से उस दिन उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया और केवल फलाहार किया। साथ ही, उन्होंने अपनी दुर्दशा से उबरने के लिए भगवान विष्णु की आराधना की, उनकी महिमा का गुणगान किया।
उनकी श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं श्रीहरि प्रकट हुए और बोले— “तुम दोनों ने अज्ञानवश भले ही अपना कर्तव्य भंग किया, लेकिन मेरी भक्ति से अब तुम मुक्त हो जाओगे। जया एकादशी के पुण्य प्रभाव से तुम्हारी प्रेत योनि समाप्त होती है।” भगवान विष्णु के आशीर्वाद से दोनों को पुनः सुंदर दिव्य शरीर प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक लौट आए।
जब वे इंद्र की सभा में पहुंचे, तो इंद्र चकित रह गए। उन्होंने पूछा— “तुम दोनों इस योनि से कैसे मुक्त हुए?” तब माल्यवान ने उत्तर दिया— “हे देवराज! हम दोनों ने जया एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की कृपा से हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली।”
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से जया एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। भगवान विष्णु की कृपा से उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और वह जीवन-मरण के बंधनों से छूटकर परम आनंद को प्राप्त करता है।
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Conclusion
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FAQ’s
Q. जया एकादशी व्रत कब मनाया जाता है?
Ans. जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 8 फरवरी, शनिवार को पड़ेगा।
Q. जया एकादशी व्रत का पालन करने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं?
Ans. इस व्रत से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है, सुख-समृद्धि बढ़ती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
Q. जया एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा क्यों की जाती है?
Ans. जया एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, उनकी आराधना से साधक को समृद्धि, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Q. जया एकादशी व्रत के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए?
Ans. व्रतधारी को उपवास रखना चाहिए, सात्विक आहार लेना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
Q. जया एकादशी के दिन तुलसी की पूजा क्यों की जाती है?
Ans. तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इसकी पूजा करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है और विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
Q. जया एकादशी व्रत का पारण कब किया जाता है?
Ans. व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है, वर्ष 2025 में यह 9 फरवरी, रविवार की प्रातः किया जाएगा।