Vat Savitri Vrat katha: प्रेम की ताकत कितनी अद्भुत होती है, यह हम सभी जानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल हो सकती है कि वह मृत्यु को भी पराजित कर दे? जी हां, ऐसा संभव है और इसका जीता-जागता उदाहरण है – वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat)। यह व्रत हमें सिखाता है कि सच्चे प्यार और दृढ़ संकल्प के आगे कोई भी बाधा टिक नहीं सकती, चाहे वह मृत्यु ही क्यों न हो।
वट सावित्री व्रत एक ऐसी कहानी है जो हर किसी को प्रेरित करती है। यह एक ऐसी पत्नी की कहानी है जिसने अपने पति के प्राण बचाने के लिए स्वयं मृत्यु से भी लोहा ले लिया। सावित्री ने अपने प्रेम और समर्पण से यमराज को भी मोह लिया और अपने पति सत्यवान को मौत के मुंह से वापस ला दिया। यह एक ऐसी मिसाल है जो हमें सिखाती है कि प्रेम में कितनी ताकत होती है। आज भी हर साल वट सावित्री व्रत के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। यह व्रत हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की नींव प्रेम, विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है। सावित्री की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें भी अपने रिश्तों को प्रेम और समर्पण से निभाना चाहिए।
तो आइए, वट सावित्री व्रत की इस प्रेरणादायक कहानी को विस्तार से जानते हैं और उससे सीख लेते हैं। यह लेख आपको सावित्री के संघर्ष, उसके अटूट प्रेम और उसके अदम्य साहस की यात्रा पर ले जाएगा। साथ ही, हम जानेंगे कि वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है और इसे कैसे मनाया जाता है। तो पढ़िए यह रोचक और प्रेरणादायक लेख अंत तक।
Table Of Content
S.NO | प्रश्न |
1 | क्या है वट सावित्री व्रत |
2 | कब है वट सावित्री व्रत |
3 | वट सावित्री का महत्व |
4 | वट सावित्री व्रत क्यों मनाई जाती है |
5 | वट सावित्री व्रत का इतिहास |
6 | वट सावित्री व्रत कथा |
7 | वट सावित्री व्रत कथा पीडीएफ |
क्या है वट सावित्री व्रत? (Kya Hai Vat Savitri Vrat)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिन्दू पत्नियों द्वारा पतियों की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है। यह माना जाता है कि इस व्रत के पालन से पत्नियों को धन समृद्धि, दाम्पत्य सुख और पति के लिए दीर्घायु प्राप्त होती है।
कब है वट सावित्री व्रत? (Kab Hai Vat Savitri Vrat)
वर्ष 2024 में वट सावित्री (Vat Savitri Vrat) अमावस्या (Amavasya) व्रत 6 जून, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वट वृक्ष की पूजा करके निर्जला व्रत रखती हैं। वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है।
वट सावित्री का महत्व (Vat Savitri Vrat Significance)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिंदू धर्म में सुहागन महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण और शुभ अवसर है, जिसे हर वर्ष ज्येष्ठा अमावस्या पर मनाया जाता है।
यह व्रत सावित्री के अनंत प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में सम्मानित है, जिन्होंने अपने पति, सत्यवान की जीवन दान की बातचीत के दौरान यमराज (Lord Yama), मृत्यु के देवता, से जीत ली थी।व्रत का पालन करने वाली महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, और फिर एक संकल्प (प्रतिज्ञा) करती हैं[ वे पूरे दिन केवल फल खाती हैं और भोजन का सेवन नहीं करती हैं, वे सूर्यास्त के बाद व्रत तोड़ती हैं। वे सत्य बोलने और झूठ बोलने से बचने की कोशिश करती हैं इस व्रत का हिस्सा बनने वाला एक और महत्वपूर्ण हिस्सा जरूरतमंद और गरीबों की मदद करना है। इन कार्यों के माध्यम से, महिलाएं अपने पति के लिए लंबी अवधि और खुशी की कामना करती हैं।
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वट सावित्री व्रत क्यों मनाई जाती है? (Kyun Manaya jata Hai Vat Savitri Vrat)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हिंदू धर्म में एक प्रमुख पर्व है जो प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या या पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और कल्याण के लिए रखती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपनी भक्ति और दृढ़ संकल्प से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाया था। इस दिन महिलाएं पवित्र वट वृक्ष (बरगद) और देवी सावित्री की पूजा करती हैं। वट वृक्ष को भगवान विष्णु और लक्ष्मी का निवास माना जाता है। व्रत के दौरान विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं जैसे सूर्य देव को प्रार्थना, वट वृक्ष की जड़ों को साफ करना, धूप-दीप जलाना, फूल-मिठाई चढ़ाना और 11 या 21 बार वृक्ष की परिक्रमा करना। इस व्रत को पति-पत्नी के प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
वट सावित्री व्रत का इतिहास (Vat Savitri Vrat History)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) का इतिहास महाभारत युग तक पहुंचता है, जब सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु से उन्हें बचाने के लिए यम, मृत्यु के देवता, से संघर्ष कियायह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या और पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है।
व्रत सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) का पालन करने वाली महिलाएं से अपने पतियों की लंबी आयु और परिवार में समान्यता के लिए करती हैं। इस व्रत में वट (बरगद) वृक्ष और सावित्री (Savitri) का नाम विशेष महत्व रखता है। बरगद का वृक्ष ब्रह्मा, विष्णु, और महेश (शिव) का निवास माना जाता है और पवित्र माना जाता है। व्रत का पालन करने वाली महिलाएं सौभाग्यवती स्त्री कहलाती हैं और वे वट वृक्ष के चारों ओर चार बार चक्कर लगाती हैं, जबकि वे अपने पतियों की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। यह व्रत कुँवारी लड़कियों, महिलाओं द्वारा भी किया जाता है, जिनके पास बच्चे होते हैं, विधवाओं, और सभी प्रकार की महिलाओं द्वारा, जिनका उद्देश्य अटूट सौभाग्य प्राप्त करना होता है।
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat katha)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) की कथा सत्यवान और सावित्री के अटूट प्रेम और पति-पत्नी के पवित्र बंधन की शक्ति का प्रतीक है।
कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और उनकी एक पुत्री हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उसने स्वयं सालव देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना पति चुना। हालांकि सत्यवान गरीब था और उसके माता-पिता अंधे थे, लेकिन सावित्री सत्यवान से ही प्रेम करती थी। देवर्षि नारद ने राजा अश्वपति को बताया कि आपकी पुत्री जिस व्यक्ति से विवाह करना चाहती है, वह अल्पायु है, और विवाह के एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही और सत्यवान से विवाह कर लिया। सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। सत्यवान की मृत्यु के दिन सावित्री उसके साथ वन में गई। जब यमराज सत्यवान की आत्मा लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे तीन वर दिए। सावित्री ने अपने सास-ससुर को दृष्टि और खोया हुआ राज्य वापस दिलाने तथा सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा।
यमराज (Yamraj) ने सावित्री (Savitri) के सभी वर पूरे किए और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। सावित्री के साथ सत्यवान घर लौटा और उन्होंने खुशहाल जीवन बिताया। इस प्रकार सावित्री ने अपनी अटूट पति-भक्ति से यमराज को भी परास्त कर दिया। वट सावित्री व्रत हिंदू महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, वट वृक्ष की पूजा करती हैं और सावित्री व्रत कथा सुनती हैं। इस व्रत को करने से पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।
वट सावित्री व्रत कथा पीडीएफ (Vat Savitri Vrat Vrat katha PDF)
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) के पावन कथा से संबंधित यह विशेष पीडीएफ (PDF) हम आपसे साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ (PDF) को सरलता पूर्वक डाउनलोड (Download) करने के बाद आप जब चाहे तब वट सावित्री व्रत की कथा को पढ़ सकते हैं।
वट सावित्री व्रत कथा PDF Download | View KahaniConclusion:-Vat Savitri Vrat katha
वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat katha) भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करता है और समाज में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। वट सावित्री व्रत से संबंधित यह बेहद विशेष लेख अगर आपको पसंद आया हो तो ऐसे ही और भी व्रत एवं प्रमुख हिंदू त्योहार से संबंधित विशेष लेख हमारी वेबसाइट पर आकर जरूर पढ़ें और हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर भी रोजाना विजिट करें।
FAQ’S
Q. वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
Ans. वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 6 जून 2024 को पड़ रहा है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को भी यह व्रत रखा जाता है।
Q. वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है?
Ans. इस व्रत को रखने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की प्राप्ति होती मानी जाती है। यह व्रत दांपत्य जीवन में मधुरता बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
Q. वट सावित्री व्रत की कथा क्या है?
Ans. वट सावित्री व्रत सावित्री और सत्यवान की कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाने के लिए यमराज से वरदान मांगा था, और यमराज ने सावित्री की बात भी मानी थी।
Q. वट सावित्री व्रत में पूजा करने की क्या प्रक्रिया है?
Ans. इस व्रत में विवाहित महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर की भी पूजा की जाती है।
Q. वट सावित्री व्रत के पावन अवसर पर क्या किया जाता है?
Ans. वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला उपवास रखती हैं। दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को पारण किया जाता है। इस दिन बरगद वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाया जाता है।
Q. वट सावित्री व्रत की पूजा में कौन सी सामग्री लगती है?
Ans. इस व्रत की पूजा में सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, लाल कलावा, बरगद के फल-पत्ते, धूप, दीपक, फल, फूल, बताशे, रोली, सुपारी, पान, नारियल, लाल कपड़ा, सिंदूर आदि का इस्तेमाल होता है।