महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini stotram): महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र – एक ऐसा पावन मंत्र जो देवी दुर्गा की शक्ति और महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र हमें उस युद्ध की याद दिलाता है जब माँ दुर्गा ने असुर राजा महिषासुर का वध किया था। इस स्तोत्र में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन है जो हमें शक्ति, साहस और आध्यात्मिकता का संदेश देता है। क्या आप जानना चाहते हैं कि महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र क्या है और इसके पाठ से क्या लाभ होते हैं? क्या आप इस स्तोत्र का हिंदी अर्थ समझना चाहते हैं ताकि आप इसका सही उच्चारण और अर्थ के साथ पाठ कर सकें? यदि हाँ, तो यह लेख आपके लिए है।
इस लेख में हम महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र के महत्व, इसके फायदों और हिंदी अनुवाद के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, हम आपको इस स्तोत्र का पीडीएफ भी प्रदान करेंगे जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं और नियमित रूप से इसका पाठ कर सकते हैं। तो चलिए, शुरू करते हैं इस दिव्य स्तोत्र से संबंधित इस लेख को और जानते हैं कि कैसे यह हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है….
Mahishasura Mardini – Overview
टॉपिक | Mahishasura Mardini |
लेख प्रकार | इनफॉर्मेटिव आर्टिकल |
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | माँ दुर्गा |
श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् क्या है? | हिंदू स्तोत्र |
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् की रचना किसने की? | गुरु आदि शंकराचार्य |
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् कितना शक्तिशाली है? | किसी भी व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और साहस को बढ़ाता है। |
ऐगिरी नंदिनी मंत्र किसके लिए है? | ऐगिरी नंदिनी स्तोत्र देवी ऊर्जा को समर्पित है। |
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र क्या है | Mahishasura Mardini Stotram Kya Hai
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की स्तुति में लिखा गया एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली स्तोत्र है। इसे आदिशंकराचार्य ने रचा था।यह स्तोत्र 21 श्लोकों का संग्रह है, जिसमें माँ दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। इसे गाने या पाठ करने से मन को शांति, ऊर्जा और आत्मविश्वास मिलता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से नवरात्रि और दुर्गा पूजा के अवसर पर गाया जाता है।महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र माँ दुर्गा की आराधना और उनकी अद्भुत शक्ति का प्रतीक है। इसका नाम “महिषासुर मर्दिनी” इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें माँ दुर्गा के उस स्वरूप की महिमा का वर्णन है जिसने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। महिषासुर एक शक्तिशाली असुर (राक्षस) था जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर माँ दुर्गा ने अपनी महाशक्ति का प्राकट्य किया और इस असुर को परास्त किया।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का महत्व | Mahishasura Mardini Stotram Significance
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotra) को दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने और उनकी सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना माना जाता है। इसका पाठ अक्सर नवरात्रि उत्सव के दौरान किया जाता है, जो देवी मां के विभिन्न रूपों की पूजा के लिए समर्पित है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी में | Mahishasura Mardini Stotram Meaning in Hindi
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotra) गीत (ऐगिरी नंदिनी) असुर (महिषासुरन) को मारने के बाद शक्ति को शांत करने के लिए गाया जाता है। यह गाना आपके और आपके घर के आसपास अधिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह भगवान शक्ति देवी की आराधना के लिए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित । Mahishasura Mardini Stotram Meaning in Hindi
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। आप पर्वतराज हिमालय की कन्या हैं, जो पृथ्वी पर आनन्द और संसार में हर्ष का संचार करती हैं। नन्दिगण आपके चरणों में श्रद्धा से नमस्कार करते हैं, और आप गिरिश्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर अपना दिव्य वास स्थापित करती हैं। आप भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद से सदा प्रसन्न रहती हैं, और इन्द्र देवता भी आपके चरणों में नतमस्तक होते हैं। आप भगवान शिव की पवित्र पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित हैं और आपका विशाल कुटुम्ब ऐश्वर्य से भरपूर है। आपके आशीर्वाद से सम्पूर्ण जगत में सुख और समृद्धि का वास होता है।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। आप वह दिव्य शक्ति हैं, जो देवराज इन्द्र को समृद्धि प्रदान करती हैं। आपने दुर्धर और दुर्मुख नामक दैत्यों का संहार किया और संसार को उनके आतंक से मुक्त किया। आप सदैव हर्षित और प्रसन्न रहती हैं, जो तीनों लोकों का पालन-पोषण करती हैं। आपकी उपासना से भगवान शिव संतुष्ट रहते हैं, और आप पाप को दूर कर संसार में शांति स्थापित करती हैं। आप अपनी घोर गर्जना से दैत्यों को भयभीत कर देती हैं और मदान्धों के मद को नष्ट करती हैं। आपने सदाचार से विमुख मुनिजनों पर भी क्रोध प्रकट किया। आप समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक हैं।
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥३॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। आप जगत की मातास्वरूपिणी हैं, जो कदम्ब वृक्ष के वन में प्रेम और उल्लास के साथ निवास करती हैं। आप सदैव संतुष्ट और आनंदित रहती हैं, अपने हास-परिहास में रत रहते हुए जीवन को अपने मधुर स्वभाव से सजा देती हैं। आप पर्वतों के राजा हिमालय की ऊँची चोटी पर स्थित अपने महल में निवास करती हैं, और आपकी मोहक मुस्कान मधु से भी अधिक मधुर है। आप ही वह दिव्य शक्ति हैं जिन्होंने महिषासुर का संहार किया और महाक्रूर मधु-कैटभ का वध कर संसार को रक्षित किया। रासक्रीड़ा में मग्न, आप जगत की सुख-शांति की मूर्तिमान प्रतीक हैं।
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥४॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। आप वह अद्वितीय शक्ति हैं, जिन्होंने गजाधिपति के बिना सूँड़ वाले हाथी के शरीर को काट-काट कर सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त कर दिया। आप ही वह दिव्य रूप हैं जिन्होंने सेनाध्यक्ष चण्ड और मुण्ड नामक दैत्यों को अपने प्रचंड भुजदण्ड से मारकर उनका विध्वंस किया। आपके पराक्रम के समक्ष शत्रुओं के हाथियों के गण्डस्थल भी अवशेष हो जाते हैं, और आप शेर पर आरूढ़ होकर शत्रुओं से युद्ध में उत्कृष्टता से परिपूर्ण होती हैं।
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥५॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से आपकी शक्ति और भी प्रबल हो जाती है, और आप अदम्य, अपरिमेय शक्ति से ओत-प्रोत होती हैं। आप चातुर्यपूर्ण विचारों वाले और गम्भीर कल्पनाओं में डूबे हुए प्रमथाधिपति भगवान शंकर को अपना दूत बनाने की क्षमता रखती हैं। आपकी दिव्य सत्ता दूषित कामनाओं और कुत्सित विचारों से ग्रसित दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से अनजानी रहती है, क्योंकि आप सर्वोच्च शुद्धता और महिमा की प्रतीक हैं।
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥६॥
- अर्थ : शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों के वीर पतियों को अभय प्रदान करनेवाले हाथ से शोभा पाने वाली, तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्य शत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ में धारण करने वाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से निकलने वाली ‘दुम्-दुम्’ ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥७॥
- अर्थ : अपने हुंकार मात्र से धूम्रलोचन तथा धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर डालने वाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समूहों का रक्त पी जाने वाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये गये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥८॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। समरभूमि में धनुष धारण करके, केवल शरीर को एक हल्की हलचल से शत्रुदल को कांपने पर मजबूर कर देने वाली आप, स्वर्णिम पीले रंग के तीर और तरकश से सज्जित हैं। आप भीषण योद्धाओं के सिर काटकर, चारों प्रकार की सेनाओं—हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल—का संहार करती हैं, और रणभूमि में कई प्रकार की शब्दध्वनियाँ उत्पन्न करती हैं, जो नायक बटुकों की गूंज से परिपूर्ण होती हैं।
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥९॥
- अर्थ : हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो। आप देवांगनाओं द्वारा तत-था-थेयि-थेयि शब्दों से सम्पन्न भावमय नृत्य में तन्मय होकर मग्न रहती हैं। आप कुकुथा और अन्य तालों के साथ गूंजते आश्चर्यमय गीतों को सुनने में आनंदित होती हैं। साथ ही, मृदंग की गम्भीर ध्वनियों—धुधुकुट-धूधुट आदि को सुनने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं।
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१०॥
- अर्थ : हे जपनीय मन्त्र की विजयशक्ति स्वरूपिणि! आपकी बार-बार जय हो। समस्त संसार के लोग, जो जय-जयकार के साथ आपकी स्तुति में तत्पर रहते हैं, उन सभी से नमस्कार स्वीकार करें। अपनी नूपुर के झंकार से भगवान शंकर को भी मोहित करने वाली, और प्रसिद्ध नटी-नटों के नायक अर्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुसज्जित नाट्य का आनंद लेने में मग्न रहने वाली, आप ही हो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो।
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥११॥
- अर्थ : प्रसन्न और संतुष्ट देवताओं द्वारा अर्पित अद्भुत पुष्पों से आलोकित, अत्यंत आकर्षक कान्ति धारण करने वाली, निशाचरों को वरदान देने वाले भगवान शिव की अर्धांगिनी, रात्रिसूक्त से प्रसन्न रहने वाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल से आलोकित, और सुंदर नेत्रों वाली कस्तूरी मृगों में उथल-पुथल मचाने वाले भौंरों से तथा भ्रान्तियों को दूर करने वाले ज्ञानियों से मार्गदर्शित होने वाली देवी! हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय पत्नी पार्वती! आपकी जय हो, आपकी जय हो।
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१२॥
- अर्थ : महान युद्ध के अद्वितीय योद्धाओं द्वारा कलात्मक और घुमावदार तरीके से चलाए गए भालों के युद्ध को निहारने में ध्यान लगाए रखने वाली, जो कृत्रिम लतागृह का निर्माण करती हैं और उसे बनाए रखती हैं, ऐसी स्त्रियों के बस्ती में ‘झिल्लिक’ नामक वाद्य का बजाना वाली भिल्लिनियों के समूह से सेवित होने वाली, और कानों में सुंदर रक्तवर्ण तथा कोमल पत्तों से सुसज्जित होने वाली देवी! हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय पत्नी पार्वती! आपकी जय हो, आपकी जय हो।
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१३॥
- अर्थ : सुंदर दंतपंक्ति से विभूषित स्त्रियों के मनों में उत्कंठा और आकर्षण उत्पन्न करने वाले कामदेव को जीवनदान देने वाली, निरंतर मद के रस में मग्न, गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के समान धीमी गति वाली और तीनों लोकों के आभूषण स्वरूप चंद्रमा के समान कान्ति से आलोकित सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित देवी! हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय पत्नी पार्वती! आपकी अनंत महिमा को नमन। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१४॥
- अर्थ : कमल के पत्तों के समान वक्र और निर्मल, कोमल आभा से भरा हुआ, चंद्रमा जैसा कलात्मक और उज्ज्वल ललाट पटल धारण करने वाली देवी! जो सम्पूर्ण विलासों और कलाओं की अधिष्ठात्री हैं, मन्दगति से चलने वाले और क्रीड़ा में रत राजहंसों के समूह से आलोकित होने वाली, और जिनके काले, घने केशों की चोटी पर सुगंधित मौलश्री पुष्पों के कारण भौंरों के समूह आकर्षित होते हैं। हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय पत्नी पार्वती! आपकी महिमा अनंत है। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१५॥
- अर्थ : आपके हाथों में सुशोभित मुरली की मधुर ध्वनि सुनकर, लज्जा से मौन हो जाने वाली कोयल के प्रति प्रेमभाव रखने वाली देवी! मधुर भौंरों की गूँज से गूंजायमान पर्वतीय कंदराओं में विहार करने वाली और अपने भूत-गणों तथा भिल्लिनी संगिनी के साथ आनंदमय नृत्य और क्रीड़ाओं में मग्न रहने वाली महिषासुर मर्दिनी! हे भगवान शिव की प्रिय पार्वती! आपकी दिव्य महिमा को वंदन। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१६॥
- अर्थ : अपने कटिप्रदेश पर धारण किए हुए पीले रेशमी वस्त्र की अद्भुत आभा से सूर्य की प्रभा को भी फीका कर देने वाली, सुमेरु पर्वत के शिखर पर गर्जना करते मदमस्त हाथियों के गंडस्थल जैसी भव्य छवि वाली देवी! आपके चरणनख, देवताओं और दैत्यों के मस्तक पर सुशोभित मणियों से निकली किरणों द्वारा प्रकाशित होकर चंद्रमा के समान उज्ज्वल प्रतीत होते हैं। हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय पार्वती! आपकी असीम महिमा को वंदन। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१७॥
- अर्थ : हजारों तारों पर विजय पाने वाले और सहस्रों किरणों से जगत को आलोकित करने वाले भगवान सूर्य की वंदनीय शक्ति, देवताओं के उद्धार के लिए युद्ध करने वाले, तारकासुर का संहार करने वाले, और संसार सागर से पार लगाने वाले शिवपुत्र कार्तिकेय को प्रणम्य बनाने वाली देवी! राजा सुरथ और समाधि वैश्य द्वारा साधित समाधियों में समर्पित भाव से जपे जाने वाले मंत्रों में प्रेम रखने वाली, हे भगवान शिव की प्रिय महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी अनंत महिमा को नमन है। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१८॥
- अर्थ : हे करुणामयी और कल्याणकारी शिवे! हे कमलवासिनी लक्ष्मीस्वरूपिणी कमले! जो व्यक्ति प्रतिदिन श्रद्धा और भक्ति के साथ आपके चरणकमलों की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का सान्निध्य और कृपा क्यों न प्राप्त होगी? हे शिवे, आपके चरण ही परमपद हैं। इस सत्य को हृदय में धारण करने वाले भक्त के लिए ऐसा क्या है जो सुलभ न हो—सब कुछ उसे प्राप्त होता है। हे भगवान शिव की प्रिय महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी महिमा अपार है। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१९॥
- अर्थ : स्वर्ण समान चमकते घड़ों के पवित्र जल से आपके प्रांगण की पावन रंगभूमि को जो व्यक्ति स्वच्छ करता है, वह इन्द्राणी जैसी सौंदर्यमयी और विशाल हृदय वाली स्त्रियों के सान्निध्य का सुख अवश्य प्राप्त करता है। हे सरस्वति! मैं आपके चरणकमलों को ही अपनी शरण मानता हूं। कृपया मुझे कल्याणकारी मार्ग दिखाएं। हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की अति प्रिय अर्द्धांगिनी पार्वती! आपकी महिमा अनंत है। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२०॥
- अर्थ : स्वच्छ चंद्रमा के समान सुंदरता से शोभित आपके मुखचंद्र को निर्मल कर जो आपको प्रसन्न कर लेता है, उसके लिए देवराज इंद्र की नगरी की चंद्रमुखी सुंदरियां भी सुख प्रदान करने में असमर्थ नहीं हो सकतीं। हे भगवती, जो भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व मानती हैं, मेरा विश्वास है कि आपकी कृपा से ऐसा कुछ भी नहीं है जो असाध्य रह जाए। हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की प्रिय अर्द्धांगिनी पार्वती! आपकी महिमा को शत-शत प्रणाम। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२१॥
- अर्थ : हे उमे! आप सदैव दीन-दुखियों पर अपनी करुणा बरसाती हैं, कृपया मुझ पर भी अपनी कृपा बनाए रखें। हे महालक्ष्मी! जैसे आप समस्त सृष्टि की मां हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता मानता हूं। हे शिवे! यदि आपको उचित लगे, तो मुझे आपके लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें। हे देवी! मुझ पर अपनी दयादृष्टि बनाए रखें। हे महिषासुर मर्दिनी, भगवान शिव की अर्द्धांगिनी पार्वती! आपकी जय हो, आपकी अनंत महिमा को नमन है।
स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत्।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्॥२२॥
- अर्थ : जो व्यक्ति शांतचित्त होकर पूरी एकाग्रता के साथ अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हुए नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में भगवती महालक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसे व्यक्ति के परिवारजन और सगे-संबंधी तो सदैव उसके साथ खड़े रहते ही हैं, यहां तक कि उसके शत्रु भी उसकी सेवा में तत्पर हो जाते हैं। इस नियम के पालन से न केवल मनोबल बढ़ता है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि का प्रवाह भी निरंतर बना रहता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पाठ संस्कृत में | Mahishasura Mardini Stotram ka Paath in Sanskrit
॥ महिषासुर मर्दिनि स्तोत्रम् ॥
ऐगिरी नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥1॥सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥2॥अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥3॥अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥4॥अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥5॥अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥6॥अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥7॥धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥8॥सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥9॥जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥10॥अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥11॥सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥12॥अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥13॥कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥14॥करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥15॥कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥16॥विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥17॥पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥18॥कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥19॥तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥20॥अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥21॥
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी PDF Download । Mahishasura Mardini Stotram Hindi PDF Download
इस लेख के जरिए हम आपको महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पीडीएफ के जरिए साझा कर रहे हैं, इस पीडीएफ को डाउनलोड करने के बाद आप महेश्वर से मर्दिनी स्तोत्र का पाठ सरलता पूर्वक कर सकते हैं।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र PDF Download | View Mahishasura Mardini Stotramक्यों करना चाहिए महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पाठ | Kyun Karna Chahiye Mahishasura Mardini Stotram Ka Paath
माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से विभिन्न आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं। माना जाता है कि महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों के जीवन से बाधाओं और चुनौतियों को दूर करने में मदद मिलती है। यह कठिनाइयों को दूर करने के लिए देवी दुर्गा (devi durga) के आशीर्वाद का आह्वान करता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के लाभ | Mahishasura Mardini Stotram Benefits in Hindi
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के पढ़ने के निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- मानसिक शांति और तनाव निवारण: महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक तनाव को कम करता है और शांति प्रदान करता है। यह मानसिक स्थिति को संतुलित करता है, जिससे व्यक्ति के मन में शांति और सकारात्मकता का संचार होता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है।
- रोग नाशक और शारीरिक सशक्तिकरण: यह स्तोत्र शारीरिक रोगों और मानसिक विकारों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। देवी दुर्गा की उपासना से शरीर और मन की शक्ति में वृद्धि होती है, जो आत्मविश्वास और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाता है।
- सुरक्षा और बाधाओं का नाश: महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र में देवी दुर्गा के महाक्रूर राक्षस महिषासुर पर विजय की कथा है, जो किसी भी प्रकार की रुकावट, शत्रुता और बाधाओं को दूर करने में सहायक होती है। इसे पढ़ने से जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान मिलता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र पढ़ने के नियम | Mahishasura Mardini Stotram Rules
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
2. एक लकड़ी का तख्ता रखें और उस पर साफ कपड़ा बिछाएं और फिर दुर्गा माता की मूर्ति रखें।
3. फूल या माला चढ़ाएं और देसी घी का दीया जलाएं।
4. भोग प्रसाद (हलवा चना और पूरी) चढ़ाएं
5. कुशा का आसन रखें और अगर आपके पास यह नहीं है तो कम्बल बिछा लें।
6. इस स्तोत्र का पाठ एकाग्रता, समर्पण के साथ शुरू करें और मां दुर्गा के प्रति अपार श्रद्धा रखें।
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FAQ’s
Q. महिषासुर की शक्तियाँ क्या हैं?
Ans.असुरों के राजा रंभा और भैंस होने का शापित राक्षसी राजकुमारी श्यामला को प्यार हो गया। उनके पुत्र का नाम महिषासुर था। महिषासुर के पास इच्छानुसार रूप बदलने की क्षमता थी, इस शक्ति का उपयोग उसने बाद में स्वर्ग में देवताओं से युद्ध करने के लिए किया। लेकिन देवताओं ने उसे हर बार भगा दिया।
Q. महिषासुर की क्षमताएं क्या हैं?
Ans.इस अद्वितीय उत्पत्ति ने महिषासुर को इच्छानुसार भैंस और मनुष्य के रूपों के बीच सहजता से बदलाव करने की क्षमता दी। किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर, निर्माता ब्रह्मा का कट्टर भक्त था, उसने ब्रह्मा से एक शक्तिशाली वरदान प्राप्त किया जिसने उसे देवताओं और राक्षसों के खिलाफ अजेय बना दिया।
Q. ऐगिरी नंदिनी किसने लिखी?
Ans.आयगिरि नंदिनी स्तोत्रम् की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसे मध्य युग में महाकाली के भक्त और राजा कृष्ण देवराय के दरबारी रामकृष्ण द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। रामकृष्ण को तेनाली राम के नाम से अधिक जाना जाता है।