Kali Chalisa: हिंदू धर्म में शक्ति की देवी माँ काली को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वे त्रिनेत्रधारी, घोर रूपधारी हैं, लेकिन साथ ही वे दयालु और कृपालु भी हैं। वे दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों की रक्षा करने वाली हैं। माँ काली के आशीर्वाद से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख आता है।
माँ काली की भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप है माँ काली चालीसा का पाठ। यह चालीसा माँ काली की महिमा का वर्णन करती है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करती है। माँ काली चालीसा का पाठ विधिवत करने से भक्तों को माँ काली की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसीलिए आप भी प्रतिदिन मां काली की चालीसा का पाठ अवश्य करें।
॥दोहा॥
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥
॥चौपाई॥
अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥16॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥
॥दोहा॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥
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Conclusion
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FAQ’S
Q. मां काली के प्रतीक क्या हैं?
Ans काला रंग, तीन नेत्र, खड्ग, त्रिशूल, डमरू, नरमुंड और अग्नि
निकली हुई जिह्वा मां काली के प्रतीक हैं।
Q. मां काली की शक्तियां क्या हैं?
Ans. मां काली की शक्तियां अपरंपार हैं। वे समस्त शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं। वे सभी बुराईयों का नाश करने वाली हैं।
Q. मां काली का स्वरूप कैसा है?
Ans. मां काली का स्वरूप अत्यंत भयंकर और आकर्षक दोनों है। वे काले रंग की हैं, उनके तीन नेत्र हैं, उनके हाथों में खड्ग, त्रिशूल, डमरू, नरमुंड और अग्नि है।
Q. मां काली को किन-किन नामों से जाना जाता है?
Ans. मां काली को कई नामों से जाना जाता है, जैसे: काली, महाकाली, भद्रकाली, दक्षिणकाली, मातृकाली, कामरूपकाली, गुह्यकाली, सिद्धकाली ।
Q. मां काली का प्रमुख दिन कौन सा होता है?
Ans. मां काली का प्रमुख दिन ‘शुक्रवार’ है ।