
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका: भारत की प्राचीन धार्मिक नगरी द्वारका में स्थित रुक्मिणी देवी मंदिर (Rukmini Devi Temple) एक अद्भुत आस्था का केंद्र है, जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक एवं वास्तुकला की भव्यता भी इसे विशेष बनाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका कहां स्थित है? इस मंदिर का इतिहास क्या है और इसके निर्माण से जुड़ी किंवदंतियां क्या हैं? रुक्मिणी देवी मंदिर की वास्तुकला कैसी है? क्या यह द्वारका के अन्य मंदिरों से अलग है?
यदि आप इस पवित्र स्थल के दर्शन की योजना बना रहे हैं, तो आपको जानना चाहिए कि रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका कैसे पहुंचे? क्या यहां जाने के लिए किसी विशेष साधन की आवश्यकता होती है? इसके अलावा, मंदिर में प्रवेश को लेकर भी कई लोगों के मन में सवाल होते हैं—रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका में प्रवेश शुल्क क्या है? क्या यहां जाने के लिए किसी विशेष नियम का पालन करना होता है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर और इस मंदिर से जुड़ी अद्भुत जानकारियों को जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें। यह आपको न केवल रुक्मिणी देवी मंदिर के आध्यात्मिक महत्व से अवगत कराएगा, बल्कि इसके इतिहास, वास्तुकला और यात्रा मार्ग की भी जानकारी देगा।
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका कहां है? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka kahan Hai?

रुक्मिणी देवी मंदिर (Rukmini Devi Mandir) गुजरात (Gujarat) के द्वारका शहर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है और द्वारका के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मंदिर द्वारका से बाहर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और बेट द्वारका के रास्ते में पड़ता है। इसकी भव्यता और धार्मिक महत्व इसे श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पावन स्थल बनाते हैं। मंदिर के शिखर पर विशाल ध्वज लहराता है, जिसे प्रत्येक दिन त्यौहारों और तिथियों के अनुसार बदला जाता है। द्वारका धाम की यात्रा बिना इस मंदिर के दर्शन किए अधूरी मानी जाती है।
रुक्मिणी देवी मंदिर
Address:- Dwarka, Gujarat 361335
Contact Number:- 18002031111
Rukmini Devi Temple – Location Map
Rukmini Devi Temple Dwarka Timings
Friday | 7:30 am–8 pm |
Saturday | 7:30 am–8 pm |
Sunday (Rama Navami) | 7:30 am–8 pm Hours might differ |
Monday | 7:30 am–8 pm |
Tuesday | 7:30 am–8 pm |
Wednesday | 7:30 am–8 pm |
Thursday (Mahavir Janma Kalyanak) | 7:30 am–8 pm Hours might differ |
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका का इतिहास क्या है? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka ka Itihaas kya Hai?
रुक्मिणी देवी मंदिर (Rukmini Devi Mandir) का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। किंवदंती के अनुसार, रुक्मिणी देवी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। उनके भाई रुक्मी उन्हें शिशुपाल से विवाह करने के लिए विवश कर रहे थे, लेकिन रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को संदेश भेजा, और कृष्ण उन्हें रथ में बिठाकर द्वारका ले आए। इसी कारण इस मंदिर में “रुक्मिणी हरण” कथा का विशेष महत्व है।
एक अन्य कथा के अनुसार, रुक्मिणी देवी ने ऋषि दुर्वासा को भोजन के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन वह बिना भगवान कृष्ण को बताए जल पीने चली गईं। इससे क्रोधित होकर दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे दिया कि वे कृष्ण से अलग हो जाएं और द्वारका से बाहर रहकर उनकी पूजा करें। यही कारण है कि रुक्मिणी देवी का यह मंदिर द्वारका नगर से अलग स्थित है।
मंदिर का वर्तमान स्वरूप 12वीं शताब्दी का माना जाता है, जो गुर्जर-चालुक्य शैली में निर्मित है। इसकी दीवारों पर हाथी, घोड़े, देवताओं और मानव आकृतियों की नक्काशी है, जो इसे स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण बनाती है। मंदिर में निर्जला एकादशी का पर्व विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे “रुक्मिणी हरण एकादशी” भी कहा जाता है। यहां भक्तों के लिए सबसे पुण्यदायी कार्य जलदान माना गया है, और वे श्रद्धानुसार 1001 या 1100 लीटर पानी का दान करते हैं, जिससे जल की महत्ता को समझाने की परंपरा बनी हुई है।
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रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका की वास्तुकला कैसी है? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka ki Vastu-kala kaisi Hai?

- गुर्जर-चालुक्य शैली में निर्माण: रुक्मिणी देवी मंदिर गुर्जर-चालुक्य वास्तुकला शैली में निर्मित है। इसका निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है, जो इसे द्वारका के अन्य मंदिरों की तरह भव्य रूप प्रदान करता है। मंदिर के शिखर पर विशाल ध्वज लहराता है, जिसे हर दिन तिथि और त्योहारों के अनुसार बदला जाता है।
- दीवारों पर सुंदर नक्काशी: मंदिर की बाहरी दीवारों पर हाथी, घोड़े, देवी-देवताओं और मानव आकृतियों की बारीक नक्काशी की गई है। इनमें से कई मूर्तियाँ पौराणिक कथाओं को दर्शाती हैं, जो इसकी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को बढ़ाती हैं।
- शिखर और स्तंभों की भव्यता: मंदिर का शिखर पारंपरिक हिंदू मंदिरों की तरह ऊँचा और पिरामिड आकार का है। इसके अंदर स्थित स्तंभों पर की गई नक्काशी इसकी अद्भुत वास्तुकला को दर्शाती है।
- गर्भगृह की विशेषता: मंदिर के गर्भगृह में रुक्मिणी देवी की मूर्ति विराजमान है, जो काले पत्थर से बनी हुई है। मंदिर में दर्शन से पहले महंत मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं का विस्तृत वर्णन करते हैं।
- जलदान की परंपरा: मंदिर के चारों ओर जल की कमी है, इसलिए यहां जलदान का विशेष महत्व है। भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार 1001, 1100 लीटर या अधिक मात्रा में पानी का दान करते हैं। इससे जल के महत्व और धार्मिक कर्मों की भावना को जागृत किया जाता है।
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका का महत्व क्या है? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka ka Mahatva kya Hai?

- पौराणिक कथा से जुड़ा महत्व: यह मंदिर भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी देवी को समर्पित है और ऋषि दुर्वासा के श्राप की कहानी से जुड़ा हुआ है। इस मान्यता के अनुसार, रुक्मिणी को कृष्ण से अलग रहना पड़ा, जिसके कारण उनका मंदिर द्वारका से बाहर स्थित है। यह कथा भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।
- अद्भुत वास्तुकला और ऐतिहासिक पहचान: यह मंदिर गुर्जर-चालुक्य शैली में निर्मित है और इसकी दीवारों पर की गई बारीक नक्काशी इसे स्थापत्य कला का एक बेहतरीन उदाहरण बनाती है। इसकी भव्य संरचना और ऐतिहासिक महत्व इसे न केवल धार्मिक स्थल बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी बनाते हैं।
- जलदान परंपरा और आध्यात्मिक संदेश: मंदिर क्षेत्र में जल की कमी होने के कारण यहाँ जलदान की परंपरा है, जहाँ भक्त 1001 या 1100 लीटर पानी का दान करते हैं। इससे भक्तों में सेवा भाव और जल संरक्षण का महत्व बढ़ता है, जिससे यह मंदिर आध्यात्मिकता के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता का संदेश भी देता है।
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका कैसे पहुंचे? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka kaise pahunche?
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जामनगर है, जो द्वारका से लगभग 136 किमी दूर स्थित है। जामनगर से द्वारका तक बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
- रेल मार्ग: द्वारका रेलवे स्टेशन इस मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद, राजकोट और अन्य प्रमुख शहरों से द्वारका के लिए नियमित ट्रेनें उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग: द्वारका गुजरात के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ से अहमदाबाद, राजकोट और सूरत जैसी जगहों के लिए बसें और टैक्सी सेवाएँ मिलती हैं।
रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका में प्रवेश शुल्क क्या है? | Rukmini Devi Mandir, Dwarka Me Pravesh Shulk kya Hai?
रुक्मिणी देवी मंदिर (Rukmini Devi Mandir) में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। यह मंदिर सभी श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क दर्शन की सुविधा प्रदान करता है।
गुजरात में मंदिरों की सूची:-
सूर्य मंदिर, मोढेरा | द्वारकाधीश मंदिर | अक्षरधाम मंदिर गांधीनगर | कालिका माता मंदिर
Conclusion
हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया (रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका: इतिहास, वास्तुकला, महत्व और प्रवेश शुल्क) यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपके पास किसी भी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर दर्ज करें, हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे। बाकि ऐसे ही रोमांचक लेख के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर दोबारा विज़िट करें, धन्यवाद
FAQ’s
Q. रुक्मिणी देवी मंदिर, द्वारका कहाँ स्थित है?
Ans. रुक्मिणी देवी मंदिर (Rukmini Devi Mandir) गुजरात के द्वारका शहर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित है और भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है।
Q. रुक्मिणी देवी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
Ans. यह मंदिर रुक्मिणी देवी और ऋषि दुर्वासा की कथा से जुड़ा है, जिसमें उन्हें कृष्ण से अलग रहने का श्राप मिला था, इसलिए यह मंदिर द्वारका से बाहर स्थित है।
Q. रुक्मिणी देवी मंदिर की वास्तुकला किस शैली में बनी है?
Ans. यह मंदिर गुर्जर-चालुक्य शैली में निर्मित है, जिसकी दीवारों पर हाथी, घोड़े, देवताओं और मानव आकृतियों की सुंदर नक्काशी की गई है।
Q. रुक्मिणी देवी मंदिर के गर्भगृह में क्या स्थित है?
Ans. मंदिर के गर्भगृह में रुक्मिणी देवी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है, जहाँ भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
Q. मंदिर में जलदान की परंपरा क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है?
Ans. मंदिर क्षेत्र में जल की कमी होने के कारण भक्त यहाँ श्रद्धानुसार 1001 या 1100 लीटर पानी का दान करते हैं, जिससे जल संरक्षण का महत्व बताया जाता है।
Q. द्वारका से रुक्मिणी देवी मंदिर कैसे पहुँचा जा सकता है?
Ans. मंदिर द्वारका से केवल 2 किलोमीटर दूर है और वहाँ तक टैक्सी, ऑटो या पैदल आसानी से पहुँचा जा सकता है।