
सांवरिया सेठ की कथा (Sanwariya Seth ki Katha): सांवरिया सेठ जी, जिन्हें भक्तों द्वारा श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। सांवरिया सेठ जी एक प्रसिद्ध और पवित्र धाम है, जो राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सांवरिया सेठ जी कौन हैं? उनका इतिहास क्या है? उनकी पौराणिक कथा क्या है? और उनके चमत्कार कौन-कौन से हैं? सांवरिया सेठ जी का मंदिर एक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखता है, जो सदियों से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
लेकिन सांवरिया सेठ जी की भक्ति और सेवा का महत्व क्या है? उनकी पौराणिक कथा में क्या खास बातें हैं? और उनके चमत्कारों की कहानियां क्या हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए, आइए हम सांवरिया सेठ जी के बारे में विस्तार से जानते हैं। इस लेख में, हम सांवरिया सेठ जी के जीवन, उनकी भक्ति, और उनके चमत्कारों के बारे में जानेंगे। चलिए सांवरिया सेठ जी की पवित्र और चमत्कारी दुनिया में प्रवेश करें और उनकी भक्ति और सेवा के महत्व को समझें।
आइए, इस लेख की शुरुआत करते हैं और जानते हैं सांवरिया सेठ जी के बारे में सब कुछ विस्तार से! इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें……
सांवरिया सेठ जी कौन हैं? | Sanwariya Seth ji kaun Hain

सांवरिया सेठ जी (Sanwariya Seth ji), भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Krishna) का एक रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से सांवलिया या सांवरिया सेठ के नाम से जाना जाता है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित सांवरिया जी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है, जहां भक्तों की बड़ी संख्या हर दिन दर्शन करने आती है। इस मंदिर का इतिहास मीरा बाई से भी जुड़ा हुआ है, जो भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। सांवरिया सेठ जी की पूजा में भक्ति, प्रेम और समर्पण का विशेष महत्व है। मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए गए दान का उपयोग समाज सेवा और धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। सांवरिया सेठ जी की कथा और भक्ति का यह स्थान भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
सांवरिया सेठ जी की जन्म कथा | Sanwariya Seth ji ki Janam katha
सांवरिया सेठ (Sanwariya Seth), जिन्हें भगवान श्री कृष्ण का एक रूप माना जाता है, की जन्म कथा में एक विशेष पौराणिक प्रसंग है। कहा जाता है कि भगवान ने नानी बाई का मायरा करने के लिए सांवलिया रूप धारण किया था। यह कथा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के सांवरिया जी मंदिर से जुड़ी हुई है, जहां भक्तों की अपार भीड़ होती है।
किवदंती के अनुसार, सांवरिया सेठ का जन्म एक ग्वाले के घर हुआ था, और उन्होंने अपने भक्तों के लिए अनेक चमत्कार किए। लोग उन्हें व्यापार में सफलता और समृद्धि के लिए पूजते हैं। सांवरिया सेठ का नाम व्यापार जगत में भी प्रसिद्ध है, जहां लोग उन्हें अपने व्यवसाय का भागीदार मानते हैं। इस प्रकार, सांवरिया सेठ की कथा भक्ति, समर्पण और व्यापारिक सफलता का प्रतीक बन गई है। सांवरिया सेठ की कथा में एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जो उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा और सहायता को दर्शाता है।
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श्री सांवलिया सेठ: श्रद्धा, चमत्कार और भक्ति की अनुपम कथा
भगवान श्री सांवलिया सेठ का नाम सुनते ही भक्ति, श्रद्धा और चमत्कार का अनोखा संगम स्मरण हो आता है। मान्यता है कि सांवलिया सेठ, भक्ति की प्रतीक संत मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल हैं, जिनकी पूजा मीरा जी जीवनभर करती रहीं। कथा की शुरुआत संत महात्माओं की जमात से होती है, जिसमें एक संत दयाराम जी थे। उनके पास ये दिव्य मूर्तियां थीं, जो भक्तों के लिए आदर्श बन चुकी थीं।
किवदंती के अनुसार, जब औरंगजेब की सेना मंदिरों को ध्वस्त करने की कोशिश में थी, तब दयाराम जी ने भगवान की प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड और भादसोड़ा की छापर में एक वटवृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर छिपा दिया। समय बीता, और संत दयाराम जी के देवलोकगमन के बाद ये मूर्तियां वर्षों तक भूमि में ही दबी रहीं। लेकिन परमात्मा की लीला यहीं समाप्त नहीं हुई।
वर्ष 1840 में, मंडफिया के एक ग्वाले, भोलाराम गुर्जर को स्वप्न में दर्शन हुए। भगवान ने उन्हें निर्देश दिया कि बागुंड-भादसोड़ा की छापर में दबे चार मूर्तियों को उजागर करें। स्वप्न से प्रेरित होकर भोलाराम ने वहां खुदाई की, और चमत्कारिक रूप से चार दिव्य मूर्तियां प्रकट हुईं। यह खबर आग की तरह फैली, और श्रद्धालुओं का तांता लग गया।
सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि सबसे बड़ी मूर्ति भादसोड़ा गांव ले जाई जाए। वहां गृहस्थ संत पुराजी भगत के मार्गदर्शन में मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की सहायता से एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, जिसे “सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर” के नाम से जाना गया। मंझली मूर्ति को खुदाई स्थल पर ही स्थापित किया गया, जो “प्राकट्य स्थल मंदिर” कहलाया। सबसे छोटी मूर्ति को भोलाराम ने अपने मंडफिया गांव के घर में स्थापित किया। चौथी मूर्ति, जो खुदाई में खंडित हो गई थी, उसे पुनः उसी स्थान पर समर्पित कर दिया गया।
समय के साथ, इन तीनों स्थानों पर भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। आज इन मंदिरों की ख्याति इतनी दूर तक फैली है कि लाखों भक्त हर वर्ष श्री सांवलिया सेठ के दर्शन के लिए आते हैं। उनकी महिमा व्यापार जगत में भी अद्वितीय है। माना जाता है कि जो व्यक्ति भगवान को अपना व्यावसायिक भागीदार मानकर पूजा करता है, उसके व्यापार में चमत्कारिक वृद्धि होती है।
कहते हैं कि मीरा बाई (Meera Bai) की नानी बाई के मायरे की कथा में स्वयं श्री कृष्ण ने सांवलिया सेठ का रूप धारण कर लीला रचाई थी। उनकी महिमा और चमत्कार हर भक्त को यह विश्वास दिलाते हैं कि श्रद्धा और भक्ति से बड़ा कोई बल नहीं। इसीलिए सांवलिया सेठ आज भी भक्तों के जीवन में आस्था और सफलता का संबल बने हुए हैं।
सांवलिया सेठ का इतिहास | Sanwariya Seth ka Itihas
सांवलिया सेठ (Sanwariya Seth ji), जिन्हें सांवरिया जी के नाम से भी जाना जाता है, का इतिहास भारतीय पौराणिक कथाओं और भक्ति परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनका प्रमुख मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के निकट स्थित है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
- जन्म कथा: सांवलिया सेठ (Sanwariya Seth ji) का जन्म एक ग्वाले के घर हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने नानी बाई का मायरा करने के लिए सांवलिया रूप धारण किया। नानी बाई की कथा में यह उल्लेख है कि उन्होंने अपने पति की भलाई के लिए भगवान से प्रार्थना की थी, जिसके फलस्वरूप सांवलिया सेठ प्रकट हुए।
- भक्ति परंपरा: सांवलिया सेठ की भक्ति परंपरा मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में फैली हुई है। भक्त उन्हें समर्पण और भक्ति के प्रतीक के रूप में मानते हैं।
- चमत्कार: भक्तों का मानना है कि सांवलिया सेठ ने अनेक चमत्कार किए हैं, जैसे कि कठिनाइयों में सहायता करना और व्यापार में सफलता दिलाना।
- मंदिर का निर्माण: सांवलिया जी का मंदिर 18वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह मंदिर अपनी भव्यता और अद्भुत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
- त्योहार और उत्सव: हर साल यहां विशेष त्योहारों का आयोजन होता है, जिसमें भक्तों की बड़ी संख्या शामिल होती है। विशेष रूप से, नवरात्रि और जन्माष्टमी जैसे त्योहार पर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- आध्यात्मिक महत्व: सांवलिया सेठ की पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
सांवलिया सेठ का इतिहास भक्ति, समर्पण और चमत्कारों से भरा हुआ है, जो उन्हें भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है। उनके प्रति श्रद्धा और आस्था आज भी लाखों भक्तों के दिलों में जीवित है।
Conclusion:-Sanwariya Seth ki katha
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FAQ’s:-Sanwariya Seth ki katha
Q. सांवरिया सेठ जी कौन हैं?
Ans. सांवरिया सेठ जी भगवान श्री कृष्ण का एक रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से व्यापार और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
Q. सांवरिया सेठ जी का मंदिर कहां स्थित है?
Ans. सांवरिया सेठ जी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के पास स्थित है।
Q. सांवरिया सेठ जी का इतिहास किससे जुड़ा है?
Ans. सांवरिया सेठ जी का इतिहास मीरा बाई और नानी बाई के मायरे की कथा से जुड़ा हुआ है।
Q. सांवरिया सेठ जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ था?
Ans. सांवरिया सेठ जी के मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था।
Q. सांवरिया सेठ जी की मूर्तियां कैसे प्रकट हुईं?
Ans. सांवरिया सेठ जी की मूर्तियां ग्वाले भोलाराम गुर्जर को स्वप्न में निर्देश मिलने के बाद भूमि से प्रकट हुईं।
Q. सांवरिया सेठ जी की पूजा का महत्व क्या है?
Ans. सांवरिया सेठ जी की पूजा से भक्तों को व्यापार में सफलता, मानसिक शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।