
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर: Grishneshwar Jyotirlinga Mandir भारत के भव्य और प्राचीन मंदिरों में से एक श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ( Grishneshwar Jyotirlinga Mandir) भगवान शिव का एक पावन धाम है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के धार्मिक और ऐतिहासिक खजाने में एक अनमोल रत्न की तरह स्थित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कहां स्थित है? इस मंदिर का निर्माण कब और किसके द्वारा किया गया था? इस भव्य मंदिर का इतिहास क्या है?
क्या यह किसी विशेष धार्मिक परंपरा से जुड़ा हुआ है? इसके अलावा, इस मंदिर की स्थापत्य शैली भी इसे अद्वितीय बनाती है। श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला कैसी है? क्या यह अन्य शिव मंदिरों से अलग है? यदि आप इस दिव्य धाम के दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको यह जानना आवश्यक है कि श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक कैसे पहुंचे? क्या यहां तक जाने के लिए कोई विशेष मार्ग या साधन उपलब्ध है? साथ ही, कई लोग जानना चाहते हैं कि श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में प्रवेश शुल्क क्या है? क्या इस मंदिर के दर्शन के लिए किसी विशेष नियम का पालन करना आवश्यक है?
इन सभी सवालों के उत्तर और श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir) से जुड़ी अद्भुत जानकारियों को जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें……
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कहां है? | Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir kahan Hai?

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir) भारत के महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद जिले के वेरुल गांव में स्थित है। यह मंदिर औरंगाबाद शहर से लगभग 30 किलोमीटर और दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर है। यह प्रसिद्ध एलोरा गुफाओं के निकट, मात्र आधा किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का स्थान शांत और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है, जो इसे तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षक बनाता है। यह महाराष्ट्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और आसपास के पर्यटन स्थल इसे और खास बनाते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास क्या है? | Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir ka itihas kya hai?
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, देवगिरि पर्वत के समीप एक तेजस्वी तपस्वी ब्राह्मण सुधर्मा अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहते थे। जीवन में किसी प्रकार की कमी न होते हुए भी एक संतान की अनुपस्थिति उनके हृदय में एक शून्यता भर देती थी। ज्योतिषीय गणना से स्पष्ट हुआ कि सुदेहा मातृत्व सुख नहीं पा सकती। यह सत्य स्वीकार कर पाना उसके लिए कठिन था। संतान प्राप्ति की तीव्र इच्छा से उसने अपने पति से अपनी छोटी बहन घुश्मा से विवाह करने का अनुरोध किया।
सुधर्मा पहले तो असमंजस में था, किंतु अंततः पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा। घुश्मा अत्यंत सरल, विनम्र और शिवभक्त थी। वह प्रतिदिन सच्चे मन से 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी आराधना करती थी। उसकी निष्ठा और शिवभक्ति रंग लाई, और कुछ समय बाद उसके आंगन में एक सुंदर, तेजस्वी पुत्र ने जन्म लिया। संतान प्राप्ति से सुदेहा और घुश्मा दोनों अत्यंत प्रसन्न थीं, किंतु समय बीतने के साथ-साथ सुदेहा के मन में ईर्ष्या का विष फैलने लगा। उसे लगने लगा कि इस घर में अब उसका कोई स्थान नहीं रहा। यह विचार उसके मन में गहराता चला गया, और धीरे-धीरे एक घातक षड्यंत्र का रूप ले लिया।
जब घुश्मा का पुत्र युवा हुआ और उसका विवाह संपन्न हो गया, तब एक रात ईर्ष्यालु सुदेहा ने क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ दीं। उसने सोते हुए युवक की हत्या कर उसका शव उसी तालाब में फेंक दिया, जहां घुश्मा प्रतिदिन अपने शिवलिंगों का विसर्जन किया करती थी। सुबह जब इस भयावह घटना का पता चला, तो घर में शोक की लहर दौड़ गई। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू रो-रोकर बेहाल हो गए, किंतु घुश्मा शांतचित्त अपनी शिव आराधना में लीन रही, मानो कुछ हुआ ही न हो।
जैसे ही उसने पूजा समाप्त कर तालाब में शिवलिंग विसर्जित किया, एक चमत्कार हुआ। मृत पुत्र तालाब से जीवित निकलकर अपनी मां के चरणों में गिर पड़ा। इसी क्षण भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने क्रोधित होकर सुदेहा को दंडित करने के लिए त्रिशूल उठा लिया, किंतु करुणामयी घुश्मा ने हाथ जोड़कर विनती की – “प्रभु, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरी बहन को क्षमा कर दें। उसने अज्ञानवश घोर पाप किया है, लेकिन आपकी कृपा से मुझे मेरा पुत्र पुनः प्राप्त हो गया। कृपा कर उसे क्षमा करें और लोक-कल्याण हेतु इस स्थान पर सदा के लिए निवास करें।”
भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ने भक्तवत्सलता का परिचय देते हुए घुश्मा की दोनों प्रार्थनाएं स्वीकार कर लीं। वहीं ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित होकर वे “घृष्णेश्वर महादेव” के नाम से प्रसिद्ध हुए, और यह स्थान भक्तों के लिए एक पावन तीर्थ बन गया।
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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला कैसी है? | Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir ki vastu-kala kaisi hai?
- दक्षिण भारतीय शैली: घृष्णेश्वर मंदिर (Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir) दक्षिण भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका पांच मंजिला शिखर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है, जो इसकी भव्यता को दर्शाता है।
- नक्काशीदार दीवारें: मंदिर की दीवारों पर शिव, विष्णु के दस अवतारों और अन्य देवताओं की जटिल नक्काशी की गई है, जो इसकी धार्मिक और कलात्मक सुंदरता को बढ़ाती है।
- गर्भगृह और शिवलिंग: गर्भगृह में पूर्वमुखी शिवलिंग स्थापित है, जिसके समक्ष नंदी की भव्य मूर्ति स्थित है। श्रद्धालु यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
- सभामंडप का निर्माण: 24 मजबूत पत्थर के स्तंभों वाला सभामंडप पौराणिक कथाओं की नक्काशी से सुसज्जित है, जो इसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद आकर्षक बनाता है।
- लाल पत्थर का प्रयोग: पूरा मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है, जिससे इसे प्राचीन और रहस्यमयी स्वरूप मिलता है। यह इसे दक्षिण भारतीय स्थापत्य का विशिष्ट उदाहरण बनाता है।
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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का महत्व क्या है? | Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir ka mahatva kya hai?
- धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व: घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Grishneshwar Jyotirlinga) भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह मंदिर घुश्मा नामक शिवभक्त की अद्वितीय श्रद्धा और शिव कृपा की कथा से जुड़ा हुआ है, जिससे यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र बन गया है।
- अद्भुत स्थापत्य और कलात्मकता: यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है, जिसका पांच मंजिला शिखर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसकी दीवारों पर शिव, विष्णु के दशावतार और अन्य देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी की गई है, जो इसकी धार्मिक और कलात्मक भव्यता को दर्शाती है।
- भूगोल और आध्यात्मिक आकर्षण: महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित यह मंदिर एलोरा की गुफाओं के पास अवस्थित है, जिससे यह एक प्रमुख तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल बन जाता है। शांत और प्राकृतिक वातावरण से घिरा यह मंदिर भक्तों को आत्मिक शांति प्रदान करता है और शिव साधना के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे? | Grishneshwar Jyotirlinga Mandir kaise pahunche?
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन औरंगाबाद है, जो मंदिर से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। वहां से टैक्सी या स्थानीय बस लेकर वेरुल गांव आसानी से पहुंच सकते हैं।
- वायु मार्ग: औरंगाबाद हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंचना सुविधाजनक है।
- सड़क मार्ग: औरंगाबाद से वेरुल गांव तक राज्य परिवहन बसें और निजी टैक्सी उपलब्ध हैं, जो 30 किलोमीटर की दूरी तय करके मंदिर पहुंचाती हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी | Grishneshwar Jyotirlinga Mandir Story
एक समय की बात है, देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुदेहा रहते थे, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। सुदेहा की छोटी बहन घुश्मा, जो शिव जी की परम भक्त थी, ने सुधर्मा से विवाह कर लिया। घुश्मा और सुधर्मा के पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन सुदेहा को अपनी बहन के पुत्र होने से ईर्ष्या हुई।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में प्रवेश शुल्क क्या है? | Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir me pravesh shulk kya hai?
मंदिर में सामान्य दर्शन के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता, यह सभी भक्तों के लिए मुफ्त है। अभिषेक या महाभिषेक जैसी विशेष पूजाओं के लिए न्यूनतम शुल्क देना पड़ सकता है, जो मंदिर समिति तय करती है। भक्त अपनी इच्छानुसार दान दे सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है, मंदिर प्रबंधन इसे प्रोत्साहित करता है।
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Conclusion:-Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir
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FAQ’s:-Shri Grishneshwar Jyotirlinga Mandir
Q. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर कहां स्थित है?
Ans. श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के वेरुल गांव में स्थित है, जो एलोरा गुफाओं के पास है।
Q. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का क्या महत्व है?
Ans. यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भक्तों की श्रद्धा का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
Q. मंदिर की वास्तुकला किस शैली में बनी है?
Ans. मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है और इसका शिखर लाल बलुआ पत्थर से बना है।
Q. मंदिर के गर्भगृह में क्या स्थित है?
Ans. मंदिर के गर्भगृह में पूर्वमुखी शिवलिंग स्थापित है और उसके सामने नंदी की भव्य मूर्ति है।
Q. मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं?
Ans. औरंगाबाद रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा निकटतम विकल्प हैं, वहां से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुंचा जा सकता है।
Q. मंदिर का इतिहास किस कथा से जुड़ा है?
Ans. यह मंदिर घुश्मा नामक शिवभक्त की कथा से जुड़ा है, जिन्होंने शिव आराधना से अपने मृत पुत्र को पुनर्जीवित किया था।