
माँ बगलामुखी मंदिर: माँ बगलामुखी मंदिर (Maa Baglamukhi Mandir), नलखेड़ा (Nalkheda), भारत के उन चुनिंदा आध्यात्मिक स्थलों में से एक है, जो भक्तों के दिलों में श्रद्धा और रहस्य का अनूठा संगम जगाता है।यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि तंत्र-मंत्र की साधना, चमत्कारिक शक्तियों और प्राचीन परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। क्या आपने कभी सोचा है कि यह पवित्र मंदिर आखिर कहाँ स्थित है? इसका इतिहास कितना प्राचीन और गहन है? माँ बगलामुखी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ कौन-सी हैं, जो भक्तों को आकर्षित करती हैं?
मंदिर की वास्तुकला में ऐसा क्या खास है, जो इसे अन्य तीर्थों से अलग करता है? दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय क्या है और नलखेड़ा तक पहुँचने के रास्ते कितने सुगम हैं? यदि ये सवाल आपके मन में कौतूहल पैदा कर रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का ऐसा द्वार खोलेगा, जिसे आपको अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए। माँ बगलामुखी, दस महाविद्याओं में से एक, शत्रु-नाश, सिद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। नलखेड़ा का यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य भी हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहाँ की हर कथा, हर पत्थर और हर अनुष्ठान के पीछे एक गहरी कहानी छिपी है, जो इसे देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए विशेष बनाती है।
इस लेख में हम मंदिर के हर पहलू को उजागर करेंगे, जो न केवल आपकी जिज्ञासा को शांत करेगा, बल्कि इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए आपको प्रेरित भी करेगा…….
मां बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा कहां है | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda kaha Hai?

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के आगर मालवा ज़िले के नलखेड़ा कस्बे में लखुंदर नदी के तट पर स्थित है एक अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमयी मंदिर—माँ बगलामुखी शक्तिपीठ (Maa Baglamukhi Mandir)। यह मंदिर त्रिमुखी त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है और इसकी मान्यता द्वापर युग से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडवों ने युधिष्ठिर के माध्यम से इस मंदिर की स्थापना की थी, जिससे विजयश्री प्राप्त की जा सके। इस मंदिर में स्थापित बगलामुखी देवी की प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है, जिसे तंत्र ग्रंथों में वर्णित दस महाविद्याओं में से एक विशेष शक्ति स्वरूप माना गया है।
यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि तांत्रिक अनुष्ठानों का प्रमुख केंद्र भी है, जहाँ विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु, शैव-शाक्त साधक और सिद्ध संत, विशेष रूप से श्री श्री 1008 स्वामी सांदीपेन्द्र जी महाराज, साधना हेतु आते हैं। माँ बगलामुखी के अतिरिक्त मंदिर में लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव और सरस्वती की मूर्तियाँ भी विराजित हैं, जो इस स्थल की आध्यात्मिक ऊर्जा को और अधिक व्यापक बनाती हैं। यहाँ की दिव्यता और चमत्कारी प्रभावों के कारण यह मंदिर भक्तों के बीच विशेष श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है।
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मां बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा का इतिहास | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda ka Itihas
बगलामुखी मंदिर (Maa Baglamukhi Mandir) का ऐतिहासिक सभामंडप, जो सोलह स्तंभों पर टिका हुआ है, संवत 1816 में प्रसिद्ध दक्षिणी कारीगर श्री तुलाराम द्वारा पंडित ईबुजी के मार्गदर्शन में निर्मित किया गया था और आज भी लगभग 252 वर्षों की विरासत को संजोए हुए है। इसी मंडप में एक अद्भुत कछुए की प्रतिमा स्थित है, जिसका मुख देवी की ओर है – यह देवी के प्रति श्रद्धा और पुरातन परंपराओं का प्रतीक है। प्राचीन काल में यहां देवी को बलि देने की परंपरा भी रही है। मंदिर के सामने बनी लगभग 80 फीट ऊँची दीप मालिका, राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित मानी जाती है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ा देती है। मंदिर प्रांगण में दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, उत्तरमुखी गोपाल मंदिर और पूर्वमुखी भैरवजी का मंदिर भी स्थित हैं। यहाँ का सिंहमुखी प्रवेश द्वार भी अपने स्थापत्य सौंदर्य से दर्शकों को आकर्षित करता है।
सन 1815 में इस मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार करवाया गया था। यहां भक्तजन अपनी इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में विजय प्राप्ति के लिए यज्ञ, हवन एवं पूजन-पाठ का आयोजन करते हैं। चूंकि यह मंदिर श्मशान भूमि पर स्थित है और बगलामुखी देवी तंत्र की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं, इसलिए यहां तांत्रिक साधनाओं को विशेष महत्व प्राप्त है। इस स्थान की मान्यता इसलिए भी अधिक है क्योंकि यहां की देवी मूर्ति स्वयंभू और जागृत मानी जाती है, तथा इसकी स्थापना स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी।
मंदिर परिसर में बिल्वपत्र, चंपा, आँवला, नीम, पीपल और सफेद आँकड़े जैसे वृक्षों की हरियाली मन को शांति प्रदान करती है। इसके चारों ओर फैला सुंदर बगीचा इस आध्यात्मिक वातावरण को और भी मनोहारी बनाता है। नवरात्रि में यहाँ भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है, जबकि सामान्य दिनों में श्मशान क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहां अपेक्षाकृत कम भीड़ रहती है। मंदिर के पीछे लखुन्दर नदी (जिसे प्राचीन काल में लक्ष्मणा कहा जाता था) बहती है, जिसके किनारे संतों और मुनियों की जीर्ण-शीर्ण समाधियाँ आज भी इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता का प्रमाण देती हैं।
मां बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा की पौराणिक कथा | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda ki Pauranik katha
सतयुग की एक विलक्षण घटना में, जब सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर महाविनाशकारी तूफान ने आक्रमण कर दिया, चारों ओर हाहाकार मच गया। उस समय न कोई उपाय था, न ही कोई ऐसा बल जो उस तूफान को रोक सके। सब कुछ नष्ट होता देख भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हो उठे और समाधान न पाकर उन्होंने भगवान शिव का स्मरण किया। तब शिवजी ने उन्हें बताया कि यह संकट केवल शक्ति रूपी देवी ही शांत कर सकती हैं और उन्हें उसी की शरण में जाने की सलाह दी।
भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) हरिद्रा सरोवर के पास पहुँचे और वहाँ कठोर तपस्या आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी शक्ति प्रकट हुईं। महात्रिपुरसुंदरी देवी ने हरिद्रा सरोवर की जलराशि में महापीतांबरा रूप में जलक्रीड़ा करते हुए अपने हृदय से एक दिव्य तेज प्रकट किया, जिसने उस महाविनाशकारी तूफान को शांत कर दिया।
मंगल चतुर्दशी की अर्धरात्रि को देवी शक्ति ने बगलामुखी रूप में अवतार लिया। त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने भगवान विष्णु को इच्छित वर प्रदान किया, जिससे संसार की रक्षा हो सकी। यह देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र स्वरूपा हैं, जिन्हें वीर रति भी कहा जाता है। इनके शिव स्वरूप को महारुद्र कहा गया है, और इसलिए देवी को सिद्धविद्या का स्वरूप माना जाता है। तांत्रिकों के लिए यह स्तंभन की अधिष्ठात्री देवी हैं, जबकि गृहस्थों के लिए यह संशयों और संकटों का निवारण करने वाली मातृशक्ति हैं।
दस महाविद्याओं में देवी बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं। इनकी उपासना विशेष रूप से शत्रु विनाश, वाक्सिद्धि तथा वाद-विवाद में विजय प्राप्ति के लिए की जाती है। यह देवी समस्त ब्राह्मणिक शक्तियों का समावेश मानी जाती हैं। भक्तों का विश्वास है कि इनकी कृपा से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं, बुरी शक्तियाँ नष्ट होती हैं और शत्रुओं का अंत सुनिश्चित हो जाता है। इन्हें बगलामुखी, पीतांबरा, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है।
मां बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा की वास्तुकला कैसी है? | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda ki Vastu kala kaisi Hai?
- मंदिर की प्राचीन संरचना: नलखेड़ा का मां बगलामुखी मंदिर (Maa Baglamukhi Mandir) लखुंदर नदी के तट पर द्वापर युगीन प्राचीन वास्तुकला का उदाहरण है। यह श्मशान क्षेत्र में स्थित है, जो तांत्रिक साधनाओं के लिए उपयुक्त माना जाता है। मंदिर का गर्भगृह स्वयंभू मूर्तियों (बगलामुखी, लक्ष्मी, सरस्वती) को समर्पित है। इसकी साधारण किंतु रहस्यमयी संरचना तंत्र-मंत्र साधकों को आकर्षित करती है। मंदिर के चारों ओर बिल्वपत्र, चंपा, नीम जैसे पवित्र वृक्ष और हरा-भरा बगीचा इसकी आध्यात्मिकता को बढ़ाता है।
- पीतांबरा स्वरूप और रंगों का महत्व: मंदिर की वास्तुकला में पीले रंग का विशेष महत्व है, क्योंकि मां बगलामुखी को पीतांबरा कहा जाता है। मंदिर में पूजा सामग्री, वस्त्र, और प्रसाद सभी पीले रंग के होते हैं। गर्भगृह में त्रिशक्ति मूर्तियों का त्रिकोणीय स्थान और आसपास भैरव, हनुमान, राधा-कृष्ण मंदिरों की उपस्थिति वास्तुशास्त्रीय संतुलन दर्शाती है। मंदिर का सिंहमुखी द्वार और अखंड ज्योत आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, जो भक्तों को आकर्षित करता है।
- परिसर में समाधियों और हवन कुंड की व्यवस्था: मंदिर परिसर में संतों और महात्माओं की सत्रह समाधियां और उनकी चरण पादुकाएं हैं, जो इसकी तांत्रिक और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती हैं। हवन कुंड की व्यवस्था विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति और तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए बनाई गई है, जहां पीली सरसों, हल्दी, और कमल गट्टा जैसे पदार्थों का उपयोग होता है। मंदिर की पूर्व दिशा में हनुमान मूर्ति और दक्षिण में शिव मंदिर वास्तुशास्त्र के अनुसार शक्ति और संरक्षण का प्रतीक हैं।
मां बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा दर्शन का सही समय | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda Darshan ka Sahi Samay
नलखेड़ा स्थित माँ बगलामुखी शक्तिपीठ (Maa Baglamukhi Mandir) में सुबह की आरती भक्ति की मधुर लहरियों के साथ प्रातः ठीक 6:00 बजे प्रारंभ होती है, जहाँ श्रद्धालु माँ के दिव्य दर्शन कर अपने दिन की शुरुआत पावन ऊर्जा से करते हैं। वहीं शाम की आरती का आयोजन संध्या 7:00 बजे होता है, जब मंदिर परिसर मंत्रों की गूंज और दीपों की रोशनी से आलोकित हो उठता है। भक्तों के लिए मंदिर के दर्शन प्रातः 6:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक खुले रहते हैं, जिससे दिन भर श्रद्धालु माँ के चरणों में आस्था अर्पित कर सकें।
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मां बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा कैसे पहुंचे? | Maa Baglamukhi Mandir, Nalkheda kaise Pahunche?
- रेल मार्ग से नलखेड़ा कैसे पहुंचे: अगर आप रेल मार्ग से नलखेड़ा आना चाहते हैं, तो सबसे पहले इंदौर पहुंचें। वहां से लगभग 30 किमी दूर देवास या लगभग 60 किमी दूर मक्सी रेलवे स्टेशन तक यात्रा करें। इन दोनों स्थानों से टैक्सी या बस के माध्यम से नलखेड़ा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- सड़क मार्ग: इंदौर से सड़क मार्ग द्वारा नलखेड़ा की दूरी लगभग 165 किलोमीटर है। आप देवास या उज्जैन मार्ग से होकर यात्रा कर सकते हैं। इन मार्गों पर नियमित रूप से बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं, जो यात्रियों को आरामदायक सफर के साथ नलखेड़ा तक पहुँचने में सहायता करती हैं।
- वायु मार्ग: वायु मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर का देवी अहिल्याबाई होलकर एयरपोर्ट है। यहां से टैक्सी या बस के माध्यम से लगभग 165 किलोमीटर की दूरी तय कर नलखेड़ा पहुँचा जा सकता है। यह सबसे तेज़ और सुविधाजनक विकल्प माना जाता है।
Conclusion
हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया (मां बगलामुखी मंदिर: इतिहास, वास्तुकला, महत्व और प्रवेश शुल्क) यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर आपके पास किसी भी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर दर्ज करें, हम जल्द से जल्द जवाब देने का प्रयास करेंगे। बाकि ऐसे ही रोमांचक लेख के लिए हमारी वेबसाइट जन भक्ति पर दोबारा विज़िट करें, धन्यवाद
FAQ’s
Q. माँ बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा कहाँ स्थित है?
Ans. मध्य प्रदेश के आगर मालवा ज़िले में नलखेड़ा कस्बे में लखुंदर नदी के तट पर माँ बगलामुखी मंदिर स्थित है।
Q. माँ बगलामुखी मंदिर का इतिहास कब से शुरू होता है?
Ans. माँ बगलामुखी मंदिर (Maa Baglamukhi Mandir) की स्थापना द्वापर युग में युधिष्ठिर द्वारा की गई, और 1815 में इसका जीर्णोद्धार हुआ।
Q. माँ बगलामुखी मंदिर की पौराणिक कथा क्या है?
Ans. सतयुग में देवी बगलामुखी ने विष्णु की तपस्या से प्रकट होकर माँ बगलामुखी मंदिर में तूफान शांत किया।
Q. माँ बगलामुखी मंदिर की वास्तुकला में क्या खास है?
Ans. माँ बगलामुखी मंदिर की साधारण संरचना, पीला रंग, सिंहमुखी द्वार और हवन कुंड तांत्रिक साधनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
Q. माँ बगलामुखी मंदिर में दर्शन का समय क्या है?
Ans. माँ बगलामुखी मंदिर में दर्शन सुबह 6:30 से रात 10:00 बजे तक, आरती सुबह 6:00, शाम 7:00 बजे।
Q. नलखेड़ा माँ बगलामुखी मंदिर तक रेल मार्ग से कैसे पहुँचें?
Ans. इंदौर से देवास (30 किमी) या मक्सी (60 किमी) रेलवे स्टेशन, फिर माँ बगलामुखी मंदिर तक टैक्सी/बस।